पिताजी की याद। Parivark Hindi Kahaniyan | Manohar Story | Hindi Story

Parivark Hindi Kahaniyan : मैं ऑफिस से जल्दी निकली कई दिनों से मन पर एक अजीब सा बोझ महसूस हो रहा था ना जाने क्यों लेकिन पिताजी की याद बहुत तेजी से आ रही थी दोपहर में अचानक मन बेचैन हो गया इसलिए मैंने सोचा कि भाई के घर चला जाऊं शायद पिताजी से कुछ बात हो सके भाई का घर मेरी ही कॉलोनी में था

लेकिन मन ने कई बार कदम रुकने को कहा मुझे पता था कि मां के जाने के बाद पिताजी घर में जैसे अजनबी हो गए थे नई पीढ़ी का व्यवहार उनके नियम और आदतें पिताजी के मन को नहीं भाते थे भाभी भी कोई खास स्नेहशील नहीं थी जब भी पिताजी का जिक्र होता उनके माथे पर सिलवटें पड़ जाती थी मैंने दरवाजा खटखटाया भाभी ने दरवाजा खोला हमेशा की तरह उनके चेहरे पर बनावटी मुस्कान थी अरे आओ ना आओ उन्होंने कहा मैंने पूछा पिताजी घर पर हैं

उनसे मिलने आया था भाभी हल्के से हंसते हुए बोली वो अपने किसी पुराने दोस्त के पास गए हैं शायद आज रात वहीं रुकेंगे मेरे मन को सुकून नहीं मिला मैं दरवाजे की दहलीज पर ही खड़ा रहा कुछ तो था जो ठीक नहीं लग रहा था मैं वापस जाने की सोच ही रही थी कि ऊपरी मंजिल से खांसी की हल्की सी आवाज आई यह आवाज मेरे लिए नई नहीं थी बचपन से पिताजी की यह खास खांसी मेरे मन पर अंकित थी मैं रुक गई भाभी तुरंत बोली अरे वो मोहल्ले के सुधा काका हैं

छत से आवाज आ रही है लेकिन मेरे पैर रुकने वाले नहीं थे मैंने अपने जूते उतारे और धीरे-धीरे सीढ़ियां चढ़ने लगा शायद मुझे रोकने के लिए भाभी मेरे पीछे-पीछे आई ऊपर कुछ नहीं है बस पुराने सामान का कमरा है तुम क्यों तकलीफ ले रहे हो उनकी आवाज में घबराहट थी मैं कुछ नहीं बोला लेकिन मेरे पैर और तेजी से आगे बढ़े छत पर कदम रखते ही मेरे पूरे शरीर में जैसे बिजली दौड़ गई धूप बहुत तेज थी वह धूप जिसमें पक्षी भी छाया की तलाश में रहते हैं

लेकिन वहां मेरे पिताजी बैठे थे वे जो कभी हमें इस तेज धूप से बचाकर स्कूल छोड़ने जाते थे आज उसी जलती धूप में एक पुरानी चटाई पर बैठे थे जो फटी हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे वे उस घर का हिस्सा ही नहीं थे उनके कपड़े पसीने से भीगे थे चेहरा पीला पड़ गया था और आंखों में वह शांति थी जो एक लाचार इंसान की आखिरी पुकार होती है उनके सामने वही प्याला रखा था जिसे हम बचपन में कुत्ते को पानी पिलाने के लिए इस्तेमाल करते थे

उसमें दो बासी रोटी के टुकड़े डाले हुए थे शायद सुबह के या फिर पिछले दिन के पिताजी उन टुकड़ों को पानी में भिगोकर नरम करके खाने की कोशिश कर रहे थे मेरा कलेजा एक अनजानी पीड़ा से भर गया जीभ जैसे कांपने लगी मैं बिना कुछ बोले उनकी ओर देखती रही आंखों में आंसू नहीं आए लेकिन भीतर से मेरा दिल रो रहा था पिताजी मेरी आवाज में कंपन था पिताजी ने चौंक कर मेरी ओर देखा उनकी आंखों में आश्चर्य खुशी और शर्मिंदगी सब एक साथ थे वे किसी छोटे बच्चे की तरह डर गए

जैसे हाथों पकड़े गए हो बेटा तू यहां तू क्यों आई पिताजी यह क्या हो रहा है आप नीचे क्यों नहीं आते मैंने पूछा वे बोले अरे यह खांसी है ना बच्चों को ना लग जाए इसलिए बहू ने कहा कि कुछ दिन ऊपर रहो मुझे लगा ठीक है क्या फर्क पड़ता है मैंने मुड़कर भाभी की ओर देखा जो दरवाजे पर खड़ी थी उनकी आंखों में शर्म नहीं बल्कि एक तरह की बेपरवाही थी अरे देखो ना हमें भी बच्चों की फिक्र करनी पड़ती है पिताजी को खांसी है और उम्र भी ज्यादा है

इसलिए कुछ समय के लिए ऊपर रखा है मैंने तीखे स्वर में कहा बस तो यह प्याला यह रोटी यह क्या मेहमानों के लिए है भाभी बोली अरे मैं अभी खाना लेकर आती हूं वो तो बस बचा हुआ खाना था झूठ सिर्फ झूठ मुझे सब समझ आ चुका था मेरे पिता को उस घर में वह इज्जत भी नहीं मिल रही थी जो एक नौकर को मिलती है वे धूप में थे क्योंकि उनकी हिस्से की छाया भी उस घर के लिए बोझ बन गई थी पिताजी ने मेरी आंखों से बहते आंसू देखे और नजर झुका ली

फिर धीमी आवाज में बोले बेटा मैं ठीक हूं तू फिक्र मत कर यहां बैठा हूं आकाश दिखता है और कुछ यादें उनकी आवाज अधूरी रह गई जैसे उन्होंने गले में कुछ अटका कर अपनी आंखों की नमी को दबा लिया मैंने उनका हाथ अपने हाथ में लिया वही हाथ जो कभी मेरे लिए छाता था आज धूप में जल रहा था मेरे मन ने ठान लिया कि अब कुछ तो बदलना होगा यह अन्याय मैं अब और नहीं सहऊंगी मेरा पहला कदम था

पिताजी को उस घर से निकालकर अपने घर ले जाना भले ही मैं उन्हें तुरंत घर नहीं ले जा सकी लेकिन उस घटना के बाद मेरा मन शांत नहीं था मैं रोज दोपहर को उनके लिए कुछ ना कुछ लेकर जाती उनके साथ थोड़ा वक्त बिताती उनकी बातें सुनती उनके दुख को बांटने की कोशिश करती वह छत की कमरा मेरी रोज की आदत बन गया था लेकिन शायद मेरा यह प्यार किसी को खटकने लगा था

एक दिन हमेशा की तरह जब मैं पिताजी के कमरे में पहुंची तो उनका चेहरा थोड़ा मिलान लगा पूछने पर वे बस इतना ही बोले बेटा अब ज्यादा मत आया कर सबको यह पसंद नहीं है क्या पिताजी मैं आपकी बेटी हूं क्या मुझे आपसे मिलने की भी मनाही है वे चुप रहे उनकी आंखों में ऐसी घबराहट थी जो किसी आने वाले तूफान की आहट दे रही थी

उसी शाम जब मैं लौट रही थी तो सीढ़ियों के मोड़ पर अचानक भाभी की आवाज सुनाई दी वे फोन पर किसी से बात कर रही थी उनकी आवाज तेज थी हां मैंने कई बार देखा है वे मुझे अजीब नजरों से देखते हैं उम्र हो गई है लेकिन नियत शक के घेरे में लगती है अब तो बहाने से ऊपर आते हैं कभी पानी मांगते हैं कभी कुछ और मेरे पैर वहीं ठिठक गए मेरी आंखों में आश्चर्य भर गया क्या वे वाकई मेरे पिताजी पर इल्जाम लगा रही हैं मैं आगे बढ़कर उनके सामने खड़ी हो गई

और बोली “भाभी आप मेरे पिताजी पर इल्जाम लगा रही हैं भाभी चौकी लेकिन तुरंत संभल गई मैं इल्जाम नहीं लगा रही बस वे मुझे अजीब नजरों से देखते हैं मेरा मन बेचैन हो जाता है और तू तो रोज उनके पास जाती है तुझे तो अंदाजा होना चाहिए मैं गुस्से से चीख पड़ी वे तुम्हारे ससुर हैं तुम्हें शर्म नहीं आती उसी वक्त भाई आ गया उसके चेहरे पर संदेह और गंभीरता का साया था यहां क्या चल रहा है उसने पूछा भाभी तुरंत उसके पास गई

और आंखों में आंसू लाकर बोली मैंने कुछ नहीं कहा बस तुझसे कहा था कि कुछ अजीब लग रहा है पिताजी पहले जैसे नहीं रहे भाई ने मेरी ओर देखा और बिना कोई सवाल किए बोला अगर तुझे कुछ गलत लग रहा है तो मैं पिताजी से बात करता हूं मेरा गाना गाना तू क्या कहना चाहता है सिर्फ अपनी पत्नी की भावनाओं के आधार पर अपने पिता पर इल्जाम लगा रहा है भाई चुप था और यह चुप्पी मेरे दिल में एक गहरी चोट दे गई

मुझे समझ आ गया कि घर की दीवारें पहले ही झूठ की नींव पर डगमगाने लगी थी और अब उनके गिरने का वक्त आ गया था सुबह का उजाला पूरी तरह फैलने से पहले ही मेरे फोन की घंटी बजी भाई का नंबर था एक अनजानी डर से दिल धड़कने लगा कॉल उठाया तो पीछे से हलचल की आवाज आई बस बहुत हो गया अब मैं और नहीं सह सकता भाई की आवाज गुस्से से भरी थी मैं घबरा कर बोली क्या हुआ सब ठीक है ना आकर खुद देख ले कॉल कट हो गया

मैं हड़बड़ा कर भाई के घर पहुंची दरवाजा खुला था भीड़ में कुछ औरतें जमा थी सबके चेहरों पर सवाल और आश्चर्य था मैं अंदर गई तो देखा मेरे पिता जियर पिता परी मां उनके कपड़ों पर मिट्टी लगी थी चेहरा लाल हो गया था और आंखों में वही दर्द का भाव था जो किसी तूफान के बाद की तबाही जैसा होता है मेरे कांपते पैर उनके पास जाकर रुके मेरी आवाज गले में अटक गई मैं कुछ बोल नहीं पाई बस मेरी आंखों से आंसू बहने लगे उन्होंने मेरी ओर देखा उनका चेहरा कांप रहा था

होंठ सूख गए थे बेटा मैंने कुछ नहीं किया वे कहते हैं कि मैंने चप्पल से मारा उनका सिर मेरे कंधे पर झुक गया सुन लिया जैसे शब्दों ने मेरे दिल को चीर दिया क्या कह रहे हो भाभी ने मारा पिताजी की आंखों में आंसू बहने लगे और वे मेरे पल्लू में समा गए तभी भाई बाहर आया उसके चेहरे पर कठोरता और आंखों में तिरस्कार था ले जा इन्हें तुझे इनके साथ रहना इतना पसंद है ना तो ले जा इन्हें इस घर में इनकी कोई जगह नहीं क्या बोल रहा है तू यह हमारे पिता हैं

इन्होंने हमें पाल लिया हमारे लिए अपनी पूरी जिंदगी न्योछावर कर दी भाई तड़प कर बोला वही बात थी पहले लेकिन अब यह वैसे नहीं रहे तुझ पर भी गलत नजर रखते हैं मेरी बीवी को भी मैं अपनी इज्जत से समझौता मैं चीख पड़ी तुझे शर्म नहीं आती सिर्फ भाभी के झूठे शब्दों पर भरोसा करके तू अपने बाप पर इल्जाम लगा रहा है खुद को बेटा कहता है भाई ने मेरी ओर देखा शायद पहली बार उसकी आंखों में वह रुख दिखा जो मैं आज तक अपने लिए सहती रही थी लेकिन अब पिता की इज्ज की बात थी पिताजी ने मेरे हां में हां पकड़ा था धीमी आवाज में बोले “मुझे तुझसे साथ रहना है

बेटा अब मैं यहां नहीं रह सकता मैंने उन्हें सहारा दिया उनके थके हुए पैर मेरे मन की ताकत से संभालते हुए गाड़ी तक लाए मोहल्ले की औरतें तमाशा देखते हुए खामोश खड़ी थी किसी ने कुछ नहीं कहा शायद सबको सच पता था लेकिन बोलने की हिम्मत किसी में नहीं थी रास्ते में पिताजी चुप थे मैंने उनका हार्द लिया तो वे बोले बेटा उस घर में मैंने सिर्फ आशीर्वाद दिया लेकिन बद्दुआ मिली कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा बुढ़ापा इस तरह अपमान में बीतेगा मेरी आंखों से बहते आंसुओं की कसम खाई कि अब मैं पिताजी को कभी कोई तकलीफ नहीं होने दूंगी पिताजी मेरे साथ आए

लेकिन उनकी आंखों की वह चमक कहीं खो गई थी जो मुझे हमेशा उनके संरक्षण का भरोसा देती थी दिन का ज्यादातर वक्त खामोशी में बीतता मैं बोलती वे सुनते कभी-कभी हल्की सी मुस्कान देते लेकिन वह मुस्कान भी अधूरी सी लगती मैं हमेशा उनके आसपास रहती उनके लिए मुलायम बिस्तर बिछाती पसंद का खाना बनाती लेकिन वे बस दो-चार निवाले खाते और फिर एक ठंडी सांस लेकर चुप हो जाते

एक दिन उन्होंने धीरे से पुकारा बेटा जी पिताजी अगर मैं ना रहूं तो मेरे कमरे की अलमारी के पहले ड्रर में एक नीला लिफाफा है उसे तू रख लेना पिताजी आप ऐसे क्यों बोल रहे हैं आप मेरे साथ हैं और हमेशा रहेंगे वे हल्के से हंसे कोई हमेशा नहीं रहता सिर्फ आशीर्वाद पीछे रहते हैं मेरा दिल धड़कना बंद हो गया मैंने उनके पैरों को गले लगाया और रोने लगी कुछ दिन ऐसे ही बीत गए एक दिन अचानक पिताजी की तबीयत बिगड़ गई उनकी सांसे तेज हो गई

हाथ कांपने लगे और चेहरा पसीने से तर-बतर हो गया मैंने फौरन उन्हें अस्पताल पहुंचाया डॉक्टरों ने ऑक्सीजन लगाया और कुछ जांचें की पता चला कि उनका दिल बहुत कमजोर हो चुका था और अब वक्त उनके साथ नहीं था मैंने उनका हाथ अपने हाथों में लिया उन्होंने हल्के से मुस्कुराया और कहा बेटा मेरी एक ही विनती है मेरी अंत यात्रा में कोई ना रोए खासकर वे लोग जो मेरे जीवन के दुखों का कारण बने इतना कहकर उन्होंने आंखें मूंद ली उनके दिल की धड़कन हमेशा के लिए थम गई

मेरे लिए दुनिया रुक सी गई थी मैं अनाथ हो गई थी लेकिन यह दुख कुछ अलग था मैंने अपने पिता को मरते देखा था उनकी आंखों में आखिरी आंसू महसूस किए थे और उनकी आखिरी धड़ धड़कन मेरी हथेली में थमते देखी थी पिताजी की अंत यात्रा सादगी से निकली भाई को खबर दी लेकिन वह नहीं आया महीनों तक ना उसने दुख व्यक्त किया ना ही एक फोन किया बस गली के कुछ पुराने लोग और मेरी दो सहेलियां थी जो मेरे आंसू पोंछने आई

तीन दिन बाद मुझे पिताजी के शब्द याद आए मैंने वह नीला लिफाफा निकाला जो उन्होंने मुझे दिया था वह एक वसीयत थी उसमें साफ लिखा था मैं यशवंत राव पवार पूर्ण स्वस्थ मन से अपनी सारी स्थावर और जंगम संपत्ति अपनी बेटी के नाम करता हूं जिसने मेरे दुख संकट में मेरा साथ दिया जब मेरा बेटा मुझसे दूर हो गया नीचे पिताजी की हस्ताक्षर थी और मोहल्ले के दो बुजुर्गों के साक्षी के रूप में नाम थे मैं स्तब्ध थी मुझे कभी संपत्ति की चाह नहीं थी ना ही मैंने पिताजी से कुछ मांगा था

लेकिन यह वसीयत सिर्फ संपत्ति का दस्तावेज नहीं थी यह पिताजी का मुझ पर विश्वास था उनका प्यार था और मेरी निष्ठा का फल था मैंने उस लिफाफे को सीने से लगाया और मेरे आंसुओं ने उस कागज को भिगो दिया यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा इम्तिहान था दुनिया ने मेरे पिताजी को ठुकराया था लेकिन उन्होंने दिखा दिया कि सत्य के साथी को ईश्वर कभी अकेला नहीं छोड़ता पिताजी के अंतिम संस्कार के बाद घर का हर कोना उनकी यादों से भरा था

तीसरे दिन बाद मैंने हिम्मत जुटाकर भाई को फोन किया पिताजी गए तुझे खबर भी नहीं चली वह चुप था जैसे कुछ कहना चाहता हो लेकिन शब्द गले में अटक गए हो तुझे कोई दुख नहीं मैंने पूछा उसने कहा मुझे भी कुछ समझ नहीं आता इतना कहकर उसने फोन रख दिया उस रात की शांति में अचानक कुछ आवाज हुई मैं चौंक कर जागी घड़ी में रात के 2:00 बजे थे बाहर आंगन में किसी की हलचल सी दिखी मैं धीमे कदमों से खिड़की के पास गई और पर्दा हटाया मेरा दिल जोर से धड़का दो लोग थे

और उनके साथ भाभी थी उनके हाथ में एक थैला था और चेहरे पर तनाव वे चुपके से घर के पीछे के दरवाजे से अंदर घुसे मेरा सांस रुक गया मैं छिप कर देखती रही क्योंकि कुछ गड़बड़ लग रहा था 15 मिनट बाद वे मेरे कमरे की बजाय पिताजी के कमरे की ओर गए उनका मकसद साफ था जब वे लौटे उनके हाथ में एक फोल्डर था अगली सुबह मैंने हिम्मत कर पड़ोस के काका से बात की जो श्मशान भूमि के व्यवस्थापक थे

उन्होंने एक भयानक सच बताया बेटा जिस दिन तुम्हारे पिताजी गए उस दिन अस्पताल में तुम्हारी भाभी आई थी उसने कहा कि कुछ कागजी काम के लिए तुम्हारे पिताजी का अंगूठा चाहिए उसने एक कागज पर उनका अंगूठा लिया और चली गई यह सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई अब मुझे समझ आया कि वह फोल्डर क्या था और रात की चोरी क्यों हुई भाभी ने पिताजी के मृत शरीर से छलकर नकली हस्ताक्षर बनवाए थे

उसी दिन मैंने अपनी वकील सहेली की मदद से रजिस्टर ऑफिस से जानकारी निकाली शाम तक खबर आई कि पिताजी की सारी संपत्ति उनके नाती पोतों के नाम कर दी गई थी हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान असली जैसे लग रहे थे मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया यही वह भाई था जिसने बचपन में मेरी गुड़िया के लिए पूरा बाजार छान मारा था लेकिन आज वही भाई अपनी पत्नी के कहने पर पिताजी के मृत शरीर को भी चैन से जाने नहीं दे रहा था

मैंने वह नीला लिफाफा निकाला जो पिताजी ने मरने से पहले मुझे दिया था असली वसीयत मेरे पास थी अब न्याय के लिए कोर्ट की लड़ाई लड़ने का वक्त था कुछ दिन बाद भाई का फोन आया हमें बात करनी है तू यहां आ सकती है मुझे पता था कि यह बात किस बारे में होगी मेरे हाथ अपने आप उस नीले लिफाफे की ओर गए लेकिन मन ने कहा “अभी नहीं संयम रख ” भाई के घर पहुंची तो भाभी पहले से ड्राइंग रूम में बैठी थी

उनके चेहरे पर अजीब सी सौम्यता थी और आंखों में एक चमक जैसे जीत की नशा औपचारिक बातें खत्म होते ही भाई ने सीधे मुद्दे पर आकर कहा हमने संपत्ति के कागजात अपडेट कर लिए हैं पिताजी ने अपनी जिंदगी में ही यह वसीयत लिखी थी जिसमें सारी संपत्ति नाती पोतों के नाम होगी मेरे मन में आया कि असली वसीयत निकालकर उनके मुंह पर फेंक दूं और चिल्लाकर कहूं तुम सब झूठे हो लेकिन मेरी जुबान जम गई

भाई ने मेरी खामोशी को देखा और कहा हमें सब शांति से और बिना विवाद के निपटाना है आखिर तू अकेली है पिताजी ने तुझे भी कुछ ना कुछ जरूर दिया होगा भाभी ने धीमे स्वर में तंज कसते हुए कहा पिताजी को भी पता था कि वंश सिर्फ बेटे ही आगे बढ़ाते हैं इसलिए उन्होंने संपत्ति पर बेटों का ही हक दिया मेरे मन में दर्द की लहर उठी लेकिन मैं चुप रही मुझे पिताजी के आखिरी शब्द याद आए

उनकी आंखों में वह बेबसी और वह आखिरी वाक्य बेटा मेरे जाने के बाद यह लिफाफा संभालना भाई ने टेबल पर कुछ कागज रखे और कहा यह कागजों की सत्यापित प्रतियां हैं तू साइन कर दे ताकि प्रक्रिया पूरी हो मेरे हाथ कांपने लगे कागज देखे तो उन पर नकली हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान साफ दिखे मुझे सब समझ आ गया लेकिन मैंने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया मैंने साइन नहीं किया बस धीमे से कहा मुझे सोचने दे भाभी ने तुरंत कहा सोचने की क्या बात है

सब साफ है अगर पिताजी को तुझे कुछ देना होता तो उन्होंने लिखा होता मैंने ऊपर देखकर कहा तुमने उनका मन पढ़ लिया था या सिर्फ वसीयत इतना कहकर मैं उठी और दरवाजे की ओर चल दी घर लौट कर मेरे आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे मुझे पता था कि झूठ क्या होता है लेकिन मैं अपने पिताजी की बेटी थी जो खामोश रह सकती थी पर कमजोर नहीं उस रात नींद नहीं आई बार-बार उस लिफाफे को खोला पढ़ा और पिताजी की हस्ताक्षर को उंगलियों से छुआ

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जैसे उनका हाथ थाम लिया हो आज पिताजी का न्याय उनकी वसीयत में नहीं मेरे धैर्य में था पिताजी के जाने के बाद महीना बीत गया उनकी कमी मेरी आत्मा को जैसे शरीर से खींच ले गई थी हर दिन उनके बिना अधूरा लगता था 13वें की तैयारी थी तो मैंने सब कुछ खुद संभाला खाना बनाते वक्त मेरे हाथ काम कर रहे थे और मन उनकी यादों से भरी प्रार्थनाओं में डूबा था 13वें के दिन मोहल्ले की औरतें आने लगी आंगन में गलीचे बिछे थे अगरबत्ती की खुशबू फैली थी

हर चेहरे पर दुख की रेखाएं थी लेकिन कुछ आंखों में उत्सुकता साफ दिख रही थी रसोई के एक कोने में बैठी एक बुजुर्ग आजी जो मोहल्ले में बरसों से रहती थी मेरे पास आई और धीमे से बोली बेटा मुझे तुझसे एक बात करनी है शायद तुझे ना पता हो मैंने आश्चर्य से उनकी ओर देखा उन्होंने धीमे स्वर में कहा तेरे पिताजी अक्सर छत की कोठरी में जाते थे हम औरतें वहां कपड़े सुखाने जाती थी तो देखती थी कि वे कुछ लिखते थे या कुछ छिपाते थे मेरा सांस तेज हो गया

क्या चीज आपने क्या देखा था नहीं बेटा हमने कभी पूछने की हिम्मत नहीं की लेकिन एक बार मैंने सुना था कि वे मेरे पति से कह रहे थे असली खजाना ना कागज है ना पैसा वह वहां छिपा है जहां सूरज की रोशनी भी उसे छू नहीं सकती मेरे मन में अजीब सी बेचैनी हुई क्या सचमुच पिताजी ने कुछ छिपाया था उनकी यादें कोई पुरानी डायरी या सचमुच कोई कीमती खजाना पास में बैठी भाभी ने आज ही की बातें सुन ली थी उनके चेहरे पर साफ घबराहट थी

वे फौरन उठकर अंदर चली गई 13वा खत्म होते ही मैं सीधे पिताजी की पुरानी पेटी के पास गई उसमें मुझे एक पुरानी चाबी मिली जिस पर लिखा था ऊपरी कोठरी रहस्य का रक्षक मेरा दिल जोर से धड़कने लगा मैंने ठान लिया कि आज रात छत की कोठरी में जाकर देखूंगी कि वहां क्या छिपा है लेकिन भाभी की चालाकी पहले ही शुरू हो चुकी थी रात की खामोशी में जब मैं छत पर पहुंची तो देखा कि वे पहले से वहां थी उनके हाथ में एक छोटी टॉर्च थी

और चेहरे पर बेचैनी साफ दिख रही थी जैसे खजाने की तलाश में आई हो उन्होंने जल्दी-जल्दी हर चीज को उलट-पलट करना शुरू किया हर कपड़ा हर डिब्बा यहां तक कि दीवार की पुरानी कीलों के पीछे भी हाथ डाला लेकिन उन्हें वह चीज नहीं मिली जो वे चाहती थी कहां छिपाया होगा जरूर कोई गहने होंगे या जमीन के असली कागज वे बड़बड़ा रही थी मैं एक कोने में चुपके से खड़ी सब देख रही थी अचानक उनके पैर से एक लकड़ी का टुकड़ा टकराया

उनका ध्यान एक अलमारी जैसे हिस्से पर गया जो धूल से भरा था उन्होंने कपड़े से उसे साफ किया और दरवाजा खोला लेकिन अंदर सिर्फ पुराने कागज सरकारी पत्र और बेकार हो चुके जमीन के नक्शे थे भाभी का चेहरा निराशा से भर गया जाते वक्त उनकी नजर पिताजी की तस्वीर पर पड़ी उनके मन में शक था सचमुच कुछ छिपाया था या यह मेरा वहम है अगले दिन जब सब लोग पूजा पाठ और खाने में व्यस्त थे भाभी बिना किसी को बताए फिर छत पर गई

इस बार वे अकेली थी शायद दिन की रोशनी में उन्हें कुछ मिले जो रात के अंधेरे में छिपा रहा उन्होंने फिर कोठरी के हर कोने को छाना तभी उनकी नजर एक पुराने कपड़े की थैली पर गई जैसे ही उन्होंने उसे उठाने के लिए हाथ बढ़ाया जमीन में हल्की सी हलचल हुई एक सरसराहट का आवाज गूंजा उनका दिल जोर से धड़कने लगा कोठरी के कोने से एक लंबा काला सांप निकला टॉर्च की रोशनी में उसकी आंखें चमक रही थी भाभी चीखने की कोशिश कर रही थी

लेकिन आवाज गले में अटक गई वे डर से पीछे हटी लेकिन तभी उनका पैर फिसला और सांप ने उनके पैर पर हमला कर दिया एक जलती हुई टीस एक कांपती चीख नीचे मौजूद लोग वह चीख सुनकर दौड़े मैं भाई और पड़ोस की औरतें भागकर ऊपर पहुंचे वह दृश्य देखकर सबके चेहरे फीके पड़ गए भाभी जमीन पर तड़प रही थी उनका चेहरा पीला पड़ गया था और सांसे तेज और टूटी-टूटी थी हमने उन्हें फौरन अस्पताल पहुंचाया

लेकिन डॉक्टरों के चेहरों से साफ था कि जहर पूरे शरीर में फैल चुका था डॉक्टर बोले हम पूरी कोशिश कर रहे हैं लेकिन यह जहर बहुत खतरनाक है पहली बार मैंने भाई की आंखों में सच्चा डर देखा वही भाई जिसने अपने पिता को घर से निकालने में पल भर नहीं सोचा था आज अपनी पत्नी को इस हालत में देखकर टूट चुका था भाभी पूरी रात मौत से जूझती रहीं कभी उनकी आंखें बंद होती कभी वे बड़ाती कोठरी छत खजाना सब साफ हो चुका था

लालच इंसान को कहां से कहां ले जाता है सुबह डॉक्टरों ने हमें बताया जहर ने उनकी नसों पर असर किया है उन्हें लकवा मार गया है उनका दाया हिस्सा पूरी तरह निष्क्रिय हो गया है शायद पिताजी के श्राप ने कहीं ना कहीं असर दिखाया मेरा चेहरा फीका पड़ गया और मैं कुर्सी पर ढह गई क्या वे कभी ठीक हो सकती हैं मैंने डॉक्टर से पूछा उन्होंने गहरी सांस ली और कहा उनकी सोचने की शक्ति बाकी है लेकिन शरीर का एक हिस्सा अब उनका साथ नहीं देगा

जब मैं उनके कमरे में गई भाभी ने मेरी ओर देखा उनकी आंखों में एक साथ कई भाव थे पछतावा शर्म दर्द और शायद कुछ ऐसे शब्द जो उनके होठों तक ना आ सके आपकी तबीयत कैसी है मैंने धीमे से पूछा जवाब में सिर्फ खामोशी थी वे कुछ कहना चाहती थी कुछ बताना चाहती थी लेकिन उनके चेहरे का वह हिस्सा हिल नहीं पा रहा था सिर्फ आंखों से आंसू बह रहे थे मैं उनके पास बैठी और उनका हाथ अपने हाथ में लिया वही हाथ जो कभी मेरे पिताजी पर उठा था

आज वही हाथ बेजान पड़ा था कमरे में सन्नाटा पसरा था भाई एक कोने में खड़े थे नजरें झुकाए और शायद भीतर से टूट रहे थे काले के चक्र ने अपना फेरा पूरा किया था न्याय की पहली चिंगारी सुलग चुकी थी लेकिन मेरा मन कह रहा था कि कहानी अभी खत्म नहीं हुई यह तो बस शुरुआत थी भाभी के बीमार पड़ने के बाद घर का माहौल तेजी से बदलने लगा भाई जो कभी उनके लिए आकाश के तारे तोड़ लाने को तैयार रहता था अब सिर्फ औपचारिक हालचाल पूछने अस्पताल जाता और भारी कदमों से लौट आता

कुछ हफ्तों बाद भाभी को घर लाया गया लेकिन वह कमरा जहां कभी पिताजी को धूप में बिठाया जाता था अब भाभी के लिए आरक्षित था उनका पलंग उस पुराने पंखे के नीचे रखा गया वह पुराना कटोरा जो पिताजी के समय इस्तेमाल होता था अब उनके सामने रखा जाता दिनभर वे चुपचाप छत की ओर देखती रहती और शाम को नौकरानी आकर उनके मुंह में एक-दो कौड़ डाल देती उनके होठों पर अब कोई आवाज नहीं थी सिर्फ आंखों में नमी बाकी थी

कुछ दिनों बाद एक और खबर ने मेरा दिल चीर दिया भाई ने दूसरी शादी कर ली नई दुल्हन सुंदर जवान और बातों में चतुर थी वही लड़की जो कभी भाभी की गोद में खेलती थी अब नई मां के रंग में रंगने लगी बड़ा बेटा चुप रहने लगा छोटा बेटा नाराज रहने लगा नई मां ने जल्दी ही घर पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली और बच्चों को भाभी से दूर कर दिया बच्चे बार-बार कहने लगे मां बीमार है उसकी बदबू आती है हम उसके कमरे में नहीं जा सकते वही बच्चे जिनके लिए भाभी ने कभी सारी दुनिया से लड़ाई की थी

आज अपनी मां की बीमारी पर शर्मिंदगीगी महसूस करने लगे एक दिन मैं भाभी के पास गई उनके पलंग के पास बैठकर मैंने उनका हाथ पकड़ा उन्होंने जैसे तैसे आंखें खोली उनके चेहरे पर कोई शिकायत नहीं थी सिर्फ एक गहरी उदासी थी मैंने नरम स्वर में कहा याद है जब आपने कहा था कि पिताजी की मौजूदगी बच्चों के लिए खतरनाक है आज आपको उन बच्चों की मौजूदगी से डर नहीं लगता वे कुछ बोल नहीं पाई उनकी आंखों की किनारे गीली हो गई और आंसू बहने लगे

नई पत्नी अब घर की मालकिन बन चुकी थी और भाभी सिर्फ एक साए की तरह रह गई थी एक बोझ एक ऐसा वजूद जिसे सब भूल जाना चाहते थे लेकिन मैं नहीं भूली थी मैं हर पल पिताजी की याद को दिल में संजोए रखती थी रोज छत की ओर देखकर लगता था कि यह कर्म फल के पल हैं जहां काल ने न्याय का हाथ थाम लिया है एक दिन नौकरानी ने यूं ही बताया खाना बच गया था तो मैंने उसे उस पुराने कटोरे में रख दिया जो पिताजी के समय इस्तेमाल होता था

मैं चौंक गई वही कटोरा जिसमें कभी मेरे पिताजी को खाना दिया जाता था जिसे कभी कुत्ते के लिए इस्तेमाल किया जाता था आज फिर इस्तेमाल हो रहा था लेकिन इस बार उस पर चिल्लाने वाली आवाज मेरे पिताजी की नहीं भाभी की थी जैसे ही नौकरानी ने वह कटोरा उनके सामने रखा उनकी आंखों में दहशत भर गई उनका पूरा शरीर कांपने लगा होठों से शब्द जैसे अटकते हुए निकले और फिर एक चीख नहीं यह कटोरा मेरे सामने मत रखो नहीं उनके शब्द अधूरे रह गए

लेकिन उनकी कांपती आवाज उनकी चीख सब कुछ बयान कर गई उनकी चीख सुनकर नई पत्नी दौड़कर ऊपर गच्ची पर आई बच्चे डर गए उन्होंने कानों पर उंगलियां रख ली भाई ने एक पल सोचा फिर आकाश की ओर देखते हुए धीमे स्वर में बोला यह वही कटोरा है जो कभी पिताजी के सामने रखा जाता था नई पत्नी ने तंज कसते हुए कहा वे तो पुरुष थे सहन कर सकते थे लेकिन यह तो औरत है इसे इतना कष्ट क्यों मैं खामोश थी लेकिन मेरे भीतर चीखें गूंज रही थी

वही चीखें जो पिताजी की खामोशी में दबी थी वही दर्द जो उन्होंने निगल लिया था और आज वही चीखें भाभी की आवाज में बाहर आ रही थी मैं उनके पास गई और बैठी उन्होंने मेरी ओर देखा उनकी आंखों में दुख की लहर थी शायद माफी मांगना चाहती थी शायद न्याय चाहती थी यह वही कटोरा है जिस पर आप हंसते थे उनकी आंखों से दो आंसू टपक कर तकिए में समा गए मैंने वह कटोरा दूर फेंका और नई थाली में खाना परोसकर उनके सामने रखा मेरे पिताजी की बेइज्जती मुझे बर्दाश्त नहीं थी

और ना ही मैं किसी की होने दूंगी लेकिन यह काल का न्याय था जो हर किसी के दरवाजे पर कभी ना कभी आता है प्यादे वहीं रहते हैं सिर्फ चेहरे बदलते हैं वे मुझे देखती रही शायद कुछ टूटा या शायद कुछ जुड़ा लेकिन अब वक्त सिर्फ खामोशी में बोल रहा था वह चीख अभी भी गच्ची की दीवारों में गूंज रही थी मैं नीचे उतरी लेकिन मन पर एक अजीब बोझ था हर कदम ऐसा लग रहा था जैसे कोई अनजान बोझ ढो रहा हो मैंने कमरे में प्रवेश किया और पिताजी के फोटो के सामने बैठी

वही फोटो जो उनके जाने के बाद मैंने अपने तकिए के पास रखा था उनके हंसते चेहरे को देखकर मेरी आंखों से शांत आंसू बहने लगे मैंने धीमे से कहा पिताजी मैंने तुम्हारा हक हासिल किया तुम्हारी इज्जत बचाई तुम्हारा नाम पवित्र रखा अब तुम शांति से सो सकते हो उस पल खिड़की से ठंडी हवा की झोंक आई जैसे पिताजी की शुभकामनाएं मेरे इर्द-गिर्द बिखर रही हो भाभी पहले ही दुख और दर्द से जूझ रही थी और अब उनके मन को भी झटके लगने लगे

भाई की नई पत्नी ने पूरे घर पर कब्जा कर लिया था उसकी मीठी बातें मासूम चेहरा और छल के जाल ने घर वालों को भी धोखा दे दिया था उसने धीरे-धीरे भाभी के बच्चों को उनके खिलाफ भड़काना शुरू किया तुम्हारी मां अब कुछ नहीं कर सकती वह सिर्फ बिस्तर पर पड़ी है यह घर तुम्हारे पिता ने मेरे लिए बनाया है अगर सम्मान से जीना है तो अपनी मां को मां मानना छोड़ दो बच्चे मासूम थे धीरे-धीरे वे भटकने लगे

उस औरत ने चालाकी से उनके दिलों में अपनी मां के लिए नफरत के बीज बोने शुरू किए जब मैं भाभी से मिलने गई वे मुझे टकटकी लगाकर देखती थी जैसे कुछ कहना चाहती हो लेकिन शब्दों में बयान नहीं कर पाती थी एक दिन छत पर मैंने उन्हें जोर-जोर से कुछ बोलने की कोशिश करते देखा लेकिन आवाज नहीं निकल रही थी सिर्फ आंखों में आंसू थे और होंठ हिल रहे थे जैसे कोई प्रार्थना या शाप बुदबुदा रही हो लेकिन मैं उन लोगों में से नहीं थी

जो चुप रहते हैं पिताजी की वसीयत मेरे पास सुरक्षित थी उनके अपने हस्ताक्षर में लिखी सच्चे साक्षियों की सही के साथ और उनके अंगूठे के निशान के साथ मुझे पता था कि झूठ की दीवार को गिराने के लिए सही वक्त का इंतजार करना होगा और वह वक्त आ चुका था भाई और उसकी नई पत्नी ने नकली कागजों की मदद से पिताजी की संपत्ति हड़प ली थी उन्होंने खुद को कानूनी वारिस साबित किया था लेकिन मुझे पता था कि अब एकमात्र रास्ता न्यायालय का है

मैंने वकीलों से संपर्क किया और सारे दस्तावेज उनके हवाले किए वकीलों ने कागज देखकर कहा यह तो साफ-साफ धोखाधड़ी है अगर साक्षी कोर्ट में हाजिर हुए और हस्ताक्षर की पहचान हो गई तो केस हमारी ओर झुकेगा कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया पहली सुनवाई में जज ने नोटिस जारी की और नकली कागजों की फॉरेंसिक जांच का आदेश दिया जब भाई को यह खबर मिली तो उसकी आंखों में पहली बार डर दिखा नई पत्नी ने उसे भड़काया यह सब तुम्हारी बहन की साजिश है

वह तुम्हें संपत्ति से बेदखल करना चाहती है लेकिन मुझे किसी का हिस्सा नहीं चाहिए था मुझे सिर्फ न्याय चाहिए था मेरे पिताजी का सम्मान और उनकी आखिरी इच्छा का संरक्षण कुछ दिनों बाद कोर्ट में सुनवाई थी मैंने सारे सबूत तैयार किए साक्षियों से संपर्क किया और पिताजी की यादों को मन में रखकर कोर्ट के दरवाजे में कदम रखा यह सिर्फ कागजी लड़ाई नहीं थी यह उस संघर्ष का हिस्सा थी जो पिताजी ने अपने आखिरी दिनों में झेला था

वह अकेलापन जो उन्होंने सहा दर्द जो उन पर थोपा गया पहली सुनवाई में जज ने भाई के वकील से पूछा अगर मृत व्यक्ति ने नाती पोतों के नाम वसीयत लिखी थी तो यह दस्तावेज अस्पताल ले जाने से पहले क्यों तैयार किया गया और मृत्यु के बाद अंगूठे के निशान क्यों लिए गए यह ऐसा सवाल था जिसने सत्य के दरवाजे खोल दिए भाई के वकील के पास कोई जवाब नहीं था मैं खामोश खड़ी रही मन में पिताजी का चेहरा लिए बार-बार एक ही वाक्य दोहराती रही

पिताजी मैंने वादा किया था कि तुम्हारे सत्य को झूठ के नीचे दबने नहीं दूंगी हालात अब पूरी तरह बदल चुके थे न्याय की तुलना पर बैठा कागज मेरे पिताजी के सत्य की गवाही दे रहा था कई महीनों तक मुकदमे की सुनवाई चली अलग-अलग तारीखों पर कोर्ट में हाजिरी देनी पड़ी साक्षियों के बयान दर्ज हुए और आखिरकार वह पल आया जिसका इंतजार ना सिर्फ मुझे बल्कि मेरे पिताजी की आत्मा को भी था

जज ने फैसला सुनाया अदालत सबूतों और साक्ष्यों के बयानों के आधार पर इस नतीजे पर पहुंची है कि असली वसीयत वही है जो मृतक यशवंत राव पवार ने अपनी बेटी के नाम लिखी थी नकली दस्तावेज अमान्य किए जाते हैं इसलिए पूरी संपत्ति कानूनी वारिस यानी बेटी के नाम की जाती है मेरे कानों में यह शब्द गूंजने लगे आंखों में आंसू थे दिल कृतज्ञता से भरा था और आत्मा को एक अजीब सी शांति का अनुभव हुआ कोर्ट के बाहर निकलकर मैंने आकाश की ओर देखा आंखें नम थी

लेकिन होठों पर मुस्कान थी पिताजी मैंने तुम्हारी इज्जत बचाई तुम्हारा हक तुम्हारी इच्छा के मुताबिक पूरा किया भाई शर्मिंदगीगी के साथ कोर्ट से बाहर निकला उसकी नई पत्नी उसका हाथ पकड़ कर तेजी से बाहर चली गई जैसे फैसले की शर्मिंदगीगी से भाग रही हो उनके चेहरों पर हार अपमान और अविश्वास साफ दिख रहा था जिस लड़की को उन्होंने कमजोर समझा था उसने उनके झूठ को जमीन पर पटक दिया था अब पूरी संपत्ति मेरे नाम थी

घर जमीन बैंक बैलेंस सब कुछ लेकिन उस पल मेरे दिल ने एक और फैसला लिया सबसे अलग और सबसे जरूरी मैंने वकीलों से कहा “मुझे यह संपत्ति नहीं चाहिए इसे किसी अनाथ आश्रम को दान कर दो वकील ने हैरानी से कहा क्या आपको अंदाजा है कि यह कितनी बड़ी रकम है मैंने हल्के से मुस्कुराकर जवाब दिया मुझे बस इतना अंदाजा है कि मेरे पिताजी ने अपनी पूरी जिंदगी दूसरों के लिए समर्पित की थी

मैं चाहती हूं कि उनका पुण्य उन बच्चों को मिले जिनके सिर पर पिता का साया नहीं है कुछ दिनों में पूरी संपत्ति एक मशहूर अनाथ आश्रम के नाम कर दी गई जब मैं पहली बार उन अनाथ बच्चों से मिली तो उनके मासूम चेहरों को देखकर मेरे मन को जो शांति और समाधान मिला वह दुनिया की किसी भी संपत्ति से बड़ा था मैंने पिताजी का फोटो वहां की दीवार पर लगाया और नीचे लिखा यह घर उन बच्चों के लिए है जिनके पास पिता नहीं है

स्वर्गीय यशवंत राव पवार की स्मृति में उनकी बेटी और उनकी ममता के लिए उधर भाई दिन-ब दिन और टूटता गया जो आदमी अहंकार से भरा था वह अब शर्म की चादर ओढ़कर छिपने की कोशिश कर रहा था नई पत्नी ने भी उसका साथ छोड़ दिया बच्चे भी दूर हो गए उनके घर में सिर्फ खामोशी पसरी थी वही पुराना कमरा वही छत और भाभी का वही ठिकाना लकवे के झटके के बाद उनकी जुबान पूरी तरह सुस्त हो चुकी थी कोई शब्द नहीं बोल पाती थी

लेकिन उनकी आंखें सब कुछ कह रही थी एक दिन मैं उनके पास गई उनकी हालत और खराब हो चुकी थी आंखों के इर्द-गिर्द काले घेरे पड़ गए थे बाल बिखरे थे शरीर थका हुआ था और आत्मा भी थक चुकी थी मैं उनके पास बैठी और उनका हाथ पकड़ा जो बिल्कुल बेजान लग रहा था उन्होंने मेरी ओर देखा और कुछ देर खामोश रही फिर उनकी आंखों से आंसू बहने लगे ना वे माफी मांग सकती थी ना खुद को बयान कर सकती थी लेकिन उनकी आंखों में जो दुख और पछतावा था

वह किसी भी शब्द से ज्यादा बोल रहा था मैंने उनके हाथ पर हाथ रखा और नरम स्वर में कहा “मैं तुमसे बदला नहीं लिया मैंने सिर्फ न्याय किया वे मुझे देखती रही शायद मेरे इस वाक्य ने उनके मन को थोड़ा सुकून दिया या शायद उनके दर्द को और गहरा कर गया मैं उठी आकाश की ओर देखा और मन ही मन सोचा यह काल का न्याय था जो पूरा हुआ सुबह की ठंडी हवा में एक अलग सी शांति थी जैसे प्रकृति ने कुछ कह दिया हो कुछ ऐसा जो शब्दों से परे था

लेकिन दिल में उतर गया था मैंने सफेद ओढ़नी लपेटी सिर झुकाया और धीरे-धीरे शशान भूमि की ओर चल पड़ी हाथ में गुलाब के फूल थे और मन में वे सारी यादें जो पिताजी के साथ बिताई थी और वे भी जो उनके बिना गुजरी थी श्मशान भूमि में पहुंचते ही मेरे कदम अपने आप रुक गए यही वह जगह थी जहां मैंने अपने पिताजी को मिट्टी में सौंपा था वह पल याद आया जब उनका सिर मेरी उंगलियों को छू कर गया था आज उनकी मिट्टी के सामने खड़ी होकर मैंने सिर झुकाया और हाथ जोड़े मेरा गला आंसुओं से भरा था

पिताजी तुम्हारी बेटी ने न्याय हासिल किया तुम्हारा सम्मान तुम्हारा नाम सब वापस लाई मेरे आंसू उनकी मिट्टी में समा रहे थे मुझे पता था कि तुम मुझे देख रहे हो और मन ही मन मुस्कुरा रहे हो तुमने कहा था बेटियों पर भरोसा रखो और वह भरोसा मैंने सार्थक किया मैं मिट्टी के पास बैठी गुलाब के फूल धीरे से मिट्टी पर रखे और उन पलों को याद करने लगी जब तुम मेरे लिए अभेद्य दीवार बनकर खड़े थे जब मैं बचपन में डर कर तुम्हारे पीछे छिप जाती थी

और तुम हंसकर कहते थे बेटा जब तक मैं हूं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा आज मैंने वही वादा तुम्हें लौटाया जब तक मैं हूं तुम्हारे सम्मान को ठेस नहीं लगने दूंगी थोड़ी देर बाद मैं उठी आखिरी बार उस मिट्टी की ओर देखा फिर आकाश की ओर नजर डाली सूरज की किरणें अब ढल रही थी जैसे वे भी उस बेटी को सलाम कर रही हो जिसने अपने पिता के न्याय को जिंदा रखा दिन महीनों में बदले महीने सालों में जिंदगी धीरे-धीरे अपने रास्ते पर लौट आई

लेकिन उस दौर में जो कुछ हुआ वह मेरी आत्मा का हिस्सा बन गया भाई अकेला पड़ गया उसकी नई पत्नी ने उसे छोड़ दिया उसके बच्चे नफरत में पलकर खामोशी का शिकार हो गए भाभी अभी भी जिंदा थी लेकिन सिर्फ एक सांस लेता शरीर बाकी था उनकी आंखों में अभी भी चेतना थी लेकिन बोलने की ताकत काल के चक्र में खो गई थी कभी-कभी लगता था जैसे वे अपनी आंखों से मुझसे माफी मांग रही हो लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी

मैंने वह पुराना घर बेचकर अनाथ आश्रम में और कमरे बनवाए वहां पढ़ने वाले बच्चों की मुस्कान मेरी जिंदगी का समाधान बन गई हर शुक्रवार को मैं उन बच्चों से मिलने ती उनके साथ बैठकर खाना खाती उनकी बातें सुनती और मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा करती हे भगवान तूने मुझे सत्य का रास्ता दिखाया संयम दिया और वह हिम्मत दी जो अन्याय के खिलाफ खड़े होने के लिए काफी थी

Parivark Hindi Kahaniyan

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