मेरे चाचा की हरकत देखकर… Manohar Kahaniyan Hindi me | Hindi story

Manohar Kahaniyan Hindi me :  हेलो दोस्तों इनायत की कहानियों में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है आज की कहानी बहुत ही दिलचस्प और खास होने वाली है तो चलिए फिर बिना देर किए अपनी कहानी को शुरू करते हैं मेरा नाम कोमल अधिराज है मैं 16 साल की हूं आप मेरी उम्र और नाम से अंदाजा लगा सकते हो कि मैं दिखने में कैसी होंगी मैं एक छोटे से कस्बे में रहती हूं मेरा घर कुछ खास बड़ा नहीं है 

लेकिन मेरे लिए यही दुनिया का सबसे खूबसूरत कोना है मेरा एक छोटा सा परिवार है जिसमें मैं मेरे मम्मी पापा और मेरा छोटा भाई सचिन रहता है हम ऐसी जगह रहते हैं जहां हर कोई एक दूसरे को जानता है लेकिन सिर्फ एक घर ऐसा है जहां ज्यादा लोगों का आना जाना नहीं है वो घर सुरेंद्र अंकल का है जो हमेशा से ही अनोखा रहा है सुरेंद्र अंकल के बारे में ज्यादा कोई भी नहीं जानता है 

अंकल की उम्र लगभग 40 के करीब होगी लेकिन उनकी आंखों में एक अजीब सा खालीपन झलकता है जैसे उनकी कोई अधूरी कहानी हो जिसे सुनने वाला कोई ना हो कस्बे के सारे लोग एक दूसरे से घुलते मिलते हैं लेकिन सिर्फ सुरेंद्र अंकल ही ऐसे हैं जो अपने घर से बाहर नहीं निकलते हैं वह सिर्फ अपने जरूरी काम की वजह से बाहर निकलते हैं उनसे मेरी पहली मुलाकात बहुत ही डरावनी थी

 जो मुझे आज भी याद है वो शाम का वक्त था और सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था हवाओं में ठंड बढ़ती जा रही थी और मैं अपनी किताबें लेकर छत पर बैठी हुई थी तभी मेरी नजर सुरेंद्र अंकल की छत पर पड़ी वह अपनी छत पर कुर्सी डालकर बैठे हुए थे और लगातार आसमान की तरफ देख रहे थे उस समय उनकी आंखों में एक ऐसी चमक थी जो मुझे परेशान कर गई मैं उन्हें घूरने लगी और तभी अचानक वो मेरी तरफ देखने लगे मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी कोई चोरी पकड़ी गई हो 

मैंने जल्दी से अपनी नजरें घुमाई और किताबों पर टिका दी मैं किताबों में खो जाने की कोशिश करने लगी लेकिन तभी किसी के रोने की हल्की सी आवाज आई मैंने फिर से सुरेंद्र अंकल की छत की तरफ देखा लेकिन इस बार वो वहां नहीं थे मैंने सोचा कि शायद मैंने कुछ गलत सुना होगा लेकिन तभी मेरे कानों में फिर से एक आवाज आई जैसे कोई कह रहा हो बचाओ बचाओ मेरी मदद करो मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा

 वह आवाजें सुरेंद्र अंकल के घर से आ रही थी या मुझे कोई भ्रम हो रहा था वह आवाजें मेरे जेहन में गूंजने लगी थी मैं छत पर ठहरी रही जैसे मेरे पैर वहीं जम गए हो हवा में एक अजीब सी ठंडक थी लेकिन मेरे भीतर कुछ जल रहा था मुझे अंदर से बेचैनी हो रही थी इसलिए मैंने अपने दरवाजे से सुरेंद्र अंकल के घर की तरफ झांक कर देखा तो बाहर से सब ठीक लग रहा था फिर वह डरी हुई आवाज किसकी थी

 

 मैं यह सब सोच ही रही थी कि तभी मेरा फोन बजने लगा मैंने फोन उठाकर देखा तो सिद्धार्थ का कॉल आ रहा था सिद्धार्थ मेरा सबसे अच्छा दोस्त है या फिर आप उसे मेरा हॉफ बॉयफ्रेंड भी कह सकते हो उसने अपनी शरारत भरी आवाज में मुझसे पूछा क्या कर रही हो बेबी मैंने उसे हाल फिलहाल की किसी भी घटना के बारे में नहीं बताया और हंसते हुए जवाब दिया कुछ नहीं बस अपनी किताबें पढ़ रही थी वो बोला अरे ऐसा क्या पढ़ लिया भाई जो इतना डर गई मुझे बाद में एहसास हुआ कि मेरी आवाज थोड़ी घबराई हुई सी लग रही थी 

 

मैंने बात बदलते हुए कहा सिद्धार्थ मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है मेरी आवाज सुनकर वो थोड़ा सीरियस हो गया और बोला “अरे जानेमन अगर तुम बोलो तो अभी छत कूद कर तुम्हारे पास आ जाता हूं ” वह इसी तरह मुझे खुश करने की कोशिश करता रहा और हम दोनों ने तकरीबन 1 घंटे तक बात की उससे बात करते वक्त मेरा दिमाग थोड़ा ठीक हो गया था लेकिन फोन रखते ही फिर से मेरा ध्यान सुरेंद्र अंकल के घर की तरफ चला गया 

 

मैंने खुद को समझाया कि शायद मैंने कुछ गलत सुना था पर मेरा दिल कह रहा था वहां कुछ तो है जो सबकी नजरों से छुपा हुआ है मैं अपनी बालकनी में खड़ी थी और तभी हल्कीहल्की बूंदा-बंदी शुरू हो गई ठंडी-ठंडी हवा मेरे चेहरे को छू के गुजर रही थी मौसम बहुत अच्छा हो रहा था और मेरे सिर से चिंता के सारे बादल हट रहे थे तभी मेरी नजर सुरेंद्र अंकल की बालकनी की तरफ गई वह भी अपनी बालकनी में खड़े होकर बारिश का मजा ले रहे थे

 

 जैसे ही मैंने उनकी तरफ देखा उन्होंने भी मेरी तरफ देखना शुरू कर दिया और कुछ सेकंड के लिए हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे उस पल मुझे महसूस हुआ जैसे वो मुझसे कुछ कहना चाहते हैं कुछ ऐसा जो उन्होंने कभी किसी से नहीं कहा है तभी मेरे कानों में एक आवाज आई क्या तुम्हें भी बारिश में भीगना पसंद है पर इस बार यह आवाज किसी और की नहीं बल्कि सुरेंद्र अंकल की थी

 

 उनकी आवाज सुनकर मैं चौंक गई क्योंकि इससे पहले उन्होंने मुझसे कभी बात नहीं की थी मैं समझ ही नहीं पाई कि उन्हें क्या जवाब दूं इसीलिए मैंने धीरे से उनकी बात पर हामी भरी और हल्की सी मुस्कान दे दी इसके बाद उन्होंने कुछ नहीं कहा और हल्का मुस्कुरा कर वापस अंदर चले गए वो तो अंदर चले गए थे पर मेरे दिल में एक अजीब सी हलचल छोड़ गए थे शायद यह पहली बार हुआ था जब मैं उनकी आंखों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी इसके बाद मेरी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आने वाला था 

 

जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था बारिश तेज हो चुकी थी हवाएं और भी ठंडी होती जा रही थी लेकिन मैं वहीं जमी खड़ी हुई थी जहां सुरेंद्र अंकल मुझे छोड़कर गए थे क्या तुम्हें भी बारिश में भीगना पसंद है उनके यह शब्द बार दो मेरे कानों में गूंज रहे थे मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि वह मुझसे बात करेंगे और इस तरह से करेंगे कि मेरे दिल की धड़कन तेज हो जाएगी हवाओं में ठंडक बढ़ने लगी थी इसलिए मैं वापस अपने कमरे में आ गई लेकिन मेरा दिल और दिमाग अभी भी वहीं अटका हुआ था

 

 सुरेंद्र अंकल के नाम से ही मेरे दिल में हलचल होने लगी थी अब मुझे उन्हें और भी जानने का मन हो रहा था आखिर वो कौन है और इतना चुपचाप क्यों रहते हैं और आज अचानक उन्होंने मुझसे यह क्यों पूछा मैं रात भर यही सब सोचती रही और मुझे नींद ही नहीं आ रही थी बारिश की बूंदे मेरी खिड़की से टकरा कर एक अलग ही संगीत सुना रही थी मैं बस करवटें बदल रही थी और खुद को दिलासा दे रही थी कि यह बस एक सामान्य सी बातचीत थी 

 

लेकिन सच तो यही था कि उस बातचीत के बाद मुझे कुछ हो गया था यही सोचते-सचते कब मेरी आंख लग गई मुझे पता ही नहीं चला और जब मैं उठी तो बारिश रुक चुकी थी उठने के बाद मैं हमेशा की तरह अपनी बालकनी गई लेकिन आज मेरी नजरें खुद ही सुरेंद्र अंकल बालकनी की तरफ चली गई उनके कमरे की खिड़की खुली हुई थी लेकिन वह अपने कमरे में नहीं थे फिर अचानक दरवाजा खुला और सुरेंद्र अंकल अपने कमरे से बाहर आए उन्होंने उस समय ब्लैक रंग की शर्ट पहन रखी थी और उनके बाल थोड़े बिखरे हुए से थे

 

 जैसे वह अभी सोकर उठे हो वह उस समय किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं लग रहे थे लेकिन मैं खुद पर हंस पड़ी कि यह सब मैं क्या सोच रही हूं वह तो उम्र में मुझसे बहुत बड़े हैं फिर यह सारे ख्याल मेरे दिमाग में क्यों आ रहे हैं मैं उन्हें देख ही रही थी कि वो अचानक मेरी तरफ देखने लगे पर इस बार मैं अपनी नजरें नहीं हटा पाई और कुछ देर तक हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे 

 

फिर मैंने उन्हें हल्की सी मुस्कान दी और घबराकर अंदर चली आई पर मेरा दिल अभी भी वहीं था अब मैं पूरी तरह उनकी आंखों की गहराइयों में डूब चुकी थी आज हमारी गली में किसी की शादी थी इसीलिए चारों तरफ बहुत शोर था और सब लोग नए-नए कपड़े पहन के घूम रहे थे लेकिन मेरा ध्यान सिर्फ एक इंसान पर था आज मैंने पहली बार सुरेंद्र अंकल को इतने अच्छे से तैयार देखा था उन्होंने पीले रंग का एक नया कुर्ता पजामा पहना था 

 

जिसमें वह किसी हैंडसम हीरो की तरह लग रहे थे मुझे खुद पर हंसी आ रही थी कि मैं उनके बारे में इतना क्यों सोच रही हूं मैंने खुद को लाख समझाने की कोशिश की लेकिन फिर भी मेरी नजरें बार-बार उन्हीं की तरफ जा रही थी थोड़ी देर तक मैं अकेले खड़ी रही फिर मेरी जिंदगी में वह पल आया जिसका मैं इंतजार कर रही थी सुरेंद्र अंकल मेरे पास आए और बोले चारों तरफ म्यूजिक बज रहा है

 

 सब लोग नाच रहे हैं पर तुम यहां अकेले क्यों खड़ी हुई हो क्या तुम्हें डांस करना पसंद नहीं है आज भी उनकी आवाज में वही सुकून था जो कल महसूस हुआ था मैंने उनके सामने अपनी नजरें झुका ली और धीरे से कहा मुझे डांस तो पसंद है लेकिन मैं किसी के साथ डांस नहीं करती उन्होंने अपनी जेब से हाथ निकाला और मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोले आज मेरे साथ करोगी मेरा दिल जोर से धड़कने लगा आसपास सब थे उस समय हमें कोई भी देख सकता था लेकिन उस पल मेरी दुनिया में सिर्फ दो ही लोग थे

 

 मैं और सुरेंद्र अंकल मैंने उनकी आंखों में देखा वो पहली बार मेरे इतने करीब थे क्या मैं सच में उनके साथ डांस करूं मैंने अपने आप से पूछा उनकी आंखों में अजीब सा सुकून था जैसे सब कुछ थम सा गया हो मैंने उनकी तरफ देखा तो उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी लेकिन उनकी आंखों में कुछ ऐसा था जो मेरे दिल को जोर से धड़कने पर मजबूर कर रहा था सुरेंद्र अंकल ने मेरी तरफ अपना हाथ बढ़ाया तो मैंने अपने होंठ भी लिए मेरी उंगलियां कांप रही थी

 

 लेकिन फिर भी मेरा दिल एक अनजाने एहसास में बहने को तैयार था तभी पीछे से मेरी मां ने आवाज लगाई कोमल बेटा यहां आओ वहां खड़ी होकर क्या कर रही हो मां की आवाज सुनकर ऐसा लगा जैसे मैं किसी सपने से जागी हूं मैंने फौरन अपनी नजरें झुका ली और बिना कुछ बोले अपना दुपट्टा ठीक करने लगी मैंने धीरे से नजरें उठाकर देखा तो सुरेंद्र अंकल अब भी वहीं खड़े थे 

 

लेकिन उनकी मुस्कान थोड़ी गहरी हो गई थी जैसे उन्हें मेरे जवाब की जरूरत ही ना हो जैसे वह पहले से ही जानते हो कि मैं उनके बारे में क्या सोच रही हूं मुझे खुद समझ नहीं आया कि मैं क्या महसूस कर रही थी उनसे बिना कुछ कहे मैं अपनी मां के साथ घर चली आई लेकिन मेरे दिल की धड़कनें अब भी पहले जैसी ही तेज थी घर आकर मैं बिस्तर पर तो लेटी थी लेकिन नींद मेरी आंखों से कोसों दूर थी 

 

वो पल बार-बार मेरे जेहन में घूम रहा था अगर मां ना बुलाती तो क्या मैं सच में सुरेंद्र अंकल का हाथ पकड़ लेती मैंने धीरे से उठकर खिड़की से बाहर झांका तो उनकी बालकनी की लाइट रही थी मेरे दिल ने चाहा कि मैं छत पर जाकर देखूं कि क्या वह भी मेरे बारे में सोच रहे होंगे पर फिर मैंने खुद को रोक लिया कि नहीं कोमल तुम यह सब क्या सोचने लगी हो लेकिन मेरा दिल मानने को तैयार ही नहीं था अगले दिन सुबह की हल्की धूप पड़ोस की छतों पर फैल चुकी थी मैं कपड़े सुखाने के बहाने छत पर आई थी

 

 लेकिन मेरी नजरें किसी और को ढूंढ रही थी और फिर कुछ ऐसा हुआ जिससे मुझे लगा कि अब तो किस्मत भी मेरा साथ दे रही है सुरेंद्र अंकल अपने मैगनेट के पास खड़े होकर किसी से बातें कर रहे थे लेकिन जैसे ही उन्होंने मुझे देखा उनके लहजे में एक ठहराव सा आ गया उन्होंने ऊपर देखकर एक हल्की सी मुस्कान दी और पहली बार मेरा नाम लिया सुरेंद्र अंकल ने मेरा नाम कोमल इतनी नरमी और अपनत्व से लिया था कि मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गई और मैं वहीं जम के खड़ी हुई थी

 

 मेरे हाथों में पकड़े हुए गीले कपड़े अचानक बहुत भारी हो गए थे वह मेरी तरफ देख रहे थे और उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी लेकिन उनकी आंखों में एक अनहा जज्बात था जो मेरे दिल की हर धड़कन को महसूस कर सकता था मेरी नजरें उनसे टकराई और अगले ही पल मैंने घबराकर अपनी नजरें झुका ली मेरा दिल तो चाह रहा था अभी उनके पास जाकर पूछूं कि आपने मेरा नाम क्यों लिया लेकिन मैं चाहकर भी कुछ नहीं कह पाई शायद वह मेरी झिंझक को समझ चुके थे 

 

उन्होंने धीरे से अपनी नजरें हटाई और वापस बातचीत में लग गए मगर मैं जानती थी कि उनका ध्यान अब भी मेरी तरफ ही था मैं जल्दी से कपड़े सुखाकर नीचे आ गई लेकिन मेरा मन वहीं अटका रह गया शाम के वक्त मेरे पूरे घर में हलचल थी मां किचन में अपना काम कर रही थी पापा अखबार पढ़ रहे थे और मैं खिड़की के पास बैठी छत की तरफ देख रही थी मेरा मन बेचैन हो रहा था और मैं समझ नहीं पा रही थी

 

 मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है मेरे मन में सुरेंद्र अंकल को लेकर इस तरह के ख्याल क्यों आ रहे थे कई सवाल थे लेकिन जवाब का कोई नामोनिशान नहीं था अचानक गली में कुछ हलचल हुई मैंने बाहर झांक कर देखा तो सुरेंद्र अंकल अपनी कार स्टार्ट कर रहे थे वो शायद कहीं जा रहे थे मगर जाने से पहले उन्होंने एक नजर मेरी खिड़की की तरफ डाली उनकी नजर पड़ते ही मेरे हाथ पैर जैसे सुन्न हो गए क्या यह कोई इत्तेफाक था या वह जानबूझ के मेरी तरफ देख रहे थे 

 

मेरा मन कह रहा था कि यह सिर्फ एक इत्तेफाक नहीं हो सकता उनकी कार धीरे-धीरे गली के मोड़ तक पहुंच गई लेकिन मेरा दिल अब भी वहीं अटका था रात को मैं अपने बिस्तर पर लेटी थी लेकिन नींद आंखों से गायब थी मैं जब भी आंखें बंद करती तो सुरेंद्र अंकल की वह गहरी नीली आंखें मेरे सामने आ जाती मैंने करवट बदली और तकिए को जोर से पकड़ा और खुद को समझाने लगी कोमल तुम यह जो भी सोच रही हो वह बहुत गलत है तुम अभी छोटी हो और वह उम्र में बहुत बड़े हैं 

 

तुम्हारा यह सब सोचना ही बहुत गलत है पर किसी ने सच कहा है कि दिल के आगे दिमाग की कहां चलती है मेरा मन कर रहा था कि छत पर जाऊं और ठंडी हवा में खुद को संभालने की कोशिश करूं लेकिन जैसे ही मैं कमरे से बाहर निकली अचानक मेरे मोबाइल पर एक मैसेज आया पहले मुझे लगा कि शायद सिद्धार्थ मैसेज कर रहा होगा पर जब मैंने मोबाइल देखा तो कोई अनजान नंबर था और मैसेज में लिखा हुआ था छत पर आओ नंबर तो अनजान था लेकिन मैं दिल से जानती थी कि यह मैसेज सुरेंद्र अंकल ने ही किया होगा 

 

मैं जल्दी से छत पर गई और सुरेंद्र अंकल की छत की तरफ देखने लगी तो वह बालकनी में खड़े होकर मेरा इंतजार कर रहे थे ऊपर ठंडी हवा बह रही थी लेकिन मेरे अंदर अजीब सी हलचल मची हुई थी अभी मैं कुछ सोच भी नहीं पाई थी कि उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ एक पर्ची मेरी छत पर फेंक दी मेरा दिल जोर से धड़क उठा पल भर के लिए तो ऐसा लगा जैसे पूरी दुनिया रुक गई हो

 

 मैं घबरा कर इधर-उधर देखने लगी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा फिर मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ी और कांपते हाथों से पर्ची उठाई पर्ची पर लिखा था कल रात में इसी समय पर मिलना मेरे हाथों में पर्ची थी लेकिन मेरे पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई थी मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज हो गई कि अगर कोई पास खड़ा होता तो सुन ही लेता मैंने चिट्ठी को जेब में रख लिया और फिर से इधर-उधर देखने लगी

 

 क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि कोई हमें इस तरह देखे फिर मेरी नजर दोबारा उनकी तरफ उठी तो वह अब भी वहीं खड़े थे और मुझे देख रहे थे उनकी आंखों में कुछ ऐसा था जिससे मैं नजरें नहीं हटा पा रही थी मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था मगर यह कैसा एहसास था जो मैं खुद नहीं समझ पा रही थी मैंने जल्दी से पर्ची को दुपट्टे के कोने में छिपाया और दबे पांव अपने कमरे में आ गई कमरा वहीं था दीवारें भी वहीं थी

 

 लेकिन मेरे अंदर कुछ बदल चुका था मैंने पर्ची को टेबल पर रखा और खुद को शीशे में देखने लगी और सोचने लगी कि मैं क्या करूं मैं जाऊं या नहीं जाऊं अगर कोई देख लेगा तो क्या होगा पर मेरे दिल ने इस बार मेरी उलझनों की एक नहीं सुनी और उसने सिर्फ एक ही सवाल किया कि अगर मैं नहीं गई तो क्या मैं रह पाऊंगी रात का सन्नाटा हर तरफ फैल चुका था लेकिन मेरे अंदर हजारों सवालों की हलचल थी मैं बिस्तर पर लेटी थी मगर नींद कोसों दूर थी

 

 मैं जैसे ही आंखें बंद करती तो सुरेंद्र अंकल का चेहरा मेरे सामने आने लगता था उनका वह हल्का सा मुस्कुराना छत पर फेंकी गई वो पर्ची और उसमें लिखे गए कुछ शब्द मुझे करवट बदलने पर मजबूर कर रहे थे मैंने अपने तकिए को जोर से भी लिया मेरे दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थी क्या मुझे जाना चाहिए और बस यही सोचते-सचते जाने कब आंख लग गई

 

 अगली सुबह जब आंख खुली तो सबसे पहला ख्याल वही था कि आज रात मैं क्या करूंगी आज दिन भर मैं खुद से लड़ती रही कभी खुद को समझाने की कोशिश करती तो कभी बेवजह मुस्कुरा उठती मां कुछ पूछती तो मैं घबरा जाती और भाई सामने आता तो मैं नजरें चुरा लेती मुझे खुद पर गुस्सा भी आ रहा था और प्यार भी आ रहा था पर मैं इतनी बेचैन क्यों हो रही थी शाम होते-होते मेरी हालत और खराब हो गई 

 

हर बीतता पल मुझे रात के करीब ले जा रहा था और मैं खुद को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी जब घर में सब सो गए तो मैंने धीरे से घड़ी की ओर देखा रात के 1:00 बज चुके थे मैंने अपनी धड़कनों को काबू में किया और धीरे से अपने कमरे का दरवाजा खोला मेरे पैरों में हल्की सी कपकपी थी पर दिल में एक अजीब सा जोश भी था जैसे ही मैंने छत पर कदम रखा तो ठंडी हवा मेरे चेहरे से टकराई मैंने चारों तरफ नजर दौड़ाई वह वहां कोई नहीं था मैं मन ही मन सोच रही थी कि क्या वह आएंगे 

 

नहीं मैंने छत के किनारे पर हाथ रखा और चुपचाप खड़ी हो गई मेरे दिल में अजीब सी हलचल थी अचानक मुझे नीचे गली में हलचल सुनाई दी मैंने झांक कर देखा तो सुरेंद्र अंकल अपनी कार पार्क कर रहे थे उन्होंने ऊपर देखा और हमारी नजरें टकरा गई और ऐसा होते ही मेरा दिल जोर से धड़क उठा वह धीमे कदमों से अपनी छत की ओर बढ़े और मैं बिना पलक झपकाए उन्हें देख रही थी जैसे ही वह छत पर आए

 

 उन्होंने हल्की सी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा मैं एकदम से सहर गई पर नजरें हटाने की हिम्मत नहीं कर पाई उन्होंने धीमी आवाज में कहा आखिर तुम आ ही गई उनकी आवाज बहुत धीमी थी लेकिन उसमें एक अजीब सा खिंचाव था मैंने कुछ नहीं कहा क्योंकि मेरा दिल इतनी जोर से धड़क रहा था कि शायद उनको भी सुनाई दे रहा होगा मुझे डरता देख वह हमारी छत पर आ गए

 

 और मेरे पास आकर बैठ गए उनके पास बैठते ही मेरे अंदर बिजली सी दौड़ गई उनका इतना करीब होना मुझे डरा भी रहा था और एक अजीब सी गर्माहट भी दे रहा था उन्होंने धीरे से कहा तुम्हें देखकर लगता नहीं कि तुम बस 16 साल की हो मैंने भी धीरे से पूछा तो मैं किस उम्र की लगती हूं वो मुस्कुराते हुए बोले तुम्हारा भरा पूरा शरीर देखकर लगता है कि तुम 25 साल की हो मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा उनकी आंखों में वही जादू था जिसने मुझे बेबस कर दिया था

 

 मैंने हिम्मत करके पूछा आपने मुझे यहां क्यों बुलाया वो कुछ देर के लिए चुप रहे फिर बोले शायद तुम्हें देखकर मुझे कुछ महसूस होता है इतना सुनते मेरा दिल जोर से धड़क उठा मैं समझ नहीं पाई कि वो क्या कहना चाह रहे थे लेकिन उनके लहजे में कुछ ऐसा था जिससे मैं खुद को रोक नहीं पाई रात गहरी होती जा रही थी और हवा भी तेज हो चली थी लेकिन मेरी धड़कन के शोर के आगे सब धीमा लग रहा था 

 

क्या मैं सही कर रही हूं या फिर मैं किसी ऐसे रास्ते पर चल पड़ी हूं जिससे वापस लौटना मुश्किल होगा मैं सुरेंद्र अंकल की आंखों में देख रही थी लेकिन कुछ समझ नहीं पा रही थी उनके लफ्जों में जो एहसास था वो मुझे अंदर तक महसूस हो रहा था उन्होंने धीरे से मेरे चेहरे की ओर देखा जैसे वह मेरे मन की उलझन को समझ रहे हो फिर धीरे से मुस्क और बोले क्या तुम कुछ नहीं कहोगी मैंने हल्के से सिर हिला दिया पर मैं क्या कहती क्योंकि मेरे तो होठ सूख चुके थे वह भी चुपचाप खड़े होकर बस मुझे ही देख रहे थे 

 

मेरा दिल अब भी बहुत तेज धड़क रहा था पर मैंने खुद को संभालते हुए कहा आपने मुझे क्यों बुलाया वो थोड़ा रुके और बोले अगर मैं तुम्हें नहीं बुलाता तो क्या तुम आती उनकी बात सुनकर मैंने नजरें झुका ली क्योंकि सच तो यही था कि अगर उन्होंने पर्ची नहीं फेंकी होती तो शायद मैं खुद को रोक लेती लेकिन अब मैं यहां खड़ी थी मेरे हाथपांव ठंडे हो चुके थे क्योंकि हवा में हल्की सी ठंडक थी लेकिन मेरे अंदर कुछ और ही गर्माहट दौड़ रही थी वो बोले तुम्हारी आंखें किसी मासूम लड़की की तरह नहीं है 

 

बल्कि उनमें कुछ और भी है कुछ ऐसा जो मुझे अपनी ओर खींचता है मेरा दिल जोरों से धड़क उठा क्योंकि मुझे नहीं पता था इस बात का मैं क्या जवाब दूं मैंने अपनी उंगलियों को आपस में फंसाया और नीचे देखने लगी वो हल्का सा मेरी तरफ झुके और बोले तुम्हें डर तो नहीं लग रहा है ना मैंने हल्के से नहीं में सिर हिलाया उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरा चेहरा अपनी उंगलियों से हल्का सा ऊपर किया 

 

और बोले तुम झूठ बोल रही हो तुम्हारी आंखें कुछ और कह रही हैं लेकिन जुबान कुछ और कह रही है उनकी उंगलियों का हल्का सा स्पर्श भी मेरे पूरे शरीर में सेहरन भर रहा था मैंने तुरंत नजरें हटा ली और खुद को थोड़ा पीछे कर लिया उन्होंने मुझे कुछ पल देखा फिर वापस रेलिंग की तरफ मुड़ गए और बोले तुम्हें पता है कोमल जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था मैं तभी समझ गया था कि तुम बाकियों से अलग हो 

 

मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा कि कैसे उन्होंने एक गहरी सांस ली मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा मुझे नहीं पता था कि उनकी इस बात का क्या मतलब था लेकिन उनके लफ्जों ने मेरे अंदर कुछ अजीब सा एहसास भर दिया था रात और गहरी हो चुकी थी दूर कहीं से कुत्ते के भौकने की आवाज आ रही थी माहौल में सन्नाटा था लेकिन मेरे अंदर एक तूफान उठ रहा था मैंने हिम्मत करके पूछा आपको मुझसे क्या चाहिए 

 

सुरेंद्र अंकल उन्होंने मेरी तरफ देखा और हल्की सी मुस्कान के साथ बोले “यह सवाल तो तुम खुद से पूछो ” कोमल कि मुझे तुमसे क्या चाहिए उनकी यह बात सुनकर मैं एक पल को सन्न रह गई क्योंकि मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं था या शायद था लेकिन मैं उसे कबूल करने से डर रही थी मैं उनकी आंखों में देख रही थी लेकिन अब उनमें पहले जैसी कोमलता नहीं थी अब वहां कुछ और ही था कुछ ऐसा जो मेरे अंदर हलचल मचा रहा था मैंने अपनी नजरें झुका ली मेरे दिल की धड़कनें जैसे पूरे माहौल में गूंज रही थी 

 

सुरेंद्र अंकल कुछ पल तक चुप रहे और फिर एक गहरी सांस लेकर बोले शायद अब हम दोनों को जाना चाहिए क्योंकि बहुत देर हो गई है मैंने सिर हिलाया लेकिन मेरे पैर जैसे वहीं जम गए थे और जाने का मन ही नहीं कर रहा था पर मैं यहां और रुक भी नहीं सकती थी मैंने खुद को जबरदस्ती उठाया और इधर-उधर देखने लगी चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था और चांद अब बादलों में छिप चुका था 

बुरे काम का बुरा नतीजा | Hindi Kahani | Best Long Hindi Story | Sad Hindi Story

मेरे उठते ही अचानक सुरेंद्र अंकल बोले कोमल मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूं उनकी बात सुनते ही मेरे पूरे शरीर में झटके से कुछ दौड़ गया मैंने उन्हें देखा पर उनके चेहरे पर कोई संकोच नहीं था वो बहुत सहज थे जैसे उन्होंने बस एक साधारण सी बात कही हो मैंने जबरदस्ती हंसने की कोशिश की और कहा आप मजाक कर रहे हैं ना उन्होंने नहीं में सिर हिलाया और बोले मैं जो महसूस करता हूं बस वही बता रहा हूं मुझे लगा जैसे मेरी सांस रुक गई हो क्या यह सच में हो रहा था क्या मैं सही सुन रही थी 

 

सुरेंद्र अंकल अब भी मुझे ही देख रहे थे उनके चेहरे पर गंभीरता थी लेकिन वह मेरे ऊपर किसी तरह का बोझ नहीं डाल रहे थे मैंने कुछ कहने के लिए होठ खोले लेकिन आवाज गले में ही अटक गई फिर जाने क्यों मेरी आंखों में आंसू आ गए मैंने तुरंत अपनी हथेलियों से उन्हें पोंछ लिया सुरेंद्र अंकल बोले कोमल तुम डरी हुई हो ना मैंने नहीं मैं सिर हिलाया और बोली मैं नहीं जानती अंकल यह सही है या गलत और इसके बाद मैंने अपना सर झुका लिया वो बोले अगर यह गलत होता तो हम दोनों यहां नहीं खड़े होते 

 

कोमल मैंने उनसे दूरी बनाते हुए कहा शायद अब हमें कभी नहीं मिलना चाहिए उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभरी और बोले अगर ऐसा होता तो तुम यहां आती ही नहीं कोमल मुझे उस समय कुछ नहीं सूझ रहा था मैंने तेजी से अपने कदम को सीढ़ियों की तरफ बढ़ाया और अपने कमरे की तरफ जाने लगी पर मेरा दिल वहीं छूट चुका था मैंने एक बार भी उनकी तरफ मुड़कर नहीं देखा

 

 और वापस अपने कमरे में आ गई कमरे में आकर मैंने वह पर्ची भी फेंक दी जो मुझे सुरेंद्र अंकल ने दी थी और फिर रोते-रोते सो गई अगली सुबह जब मैं छत पर गई तो मैंने देखा सुरेंद्र अंकल की बालकनी खाली पड़ी हुई थी और उनके कमरे की खिड़कियां भी बंद थी यह सब देखकर मेरे मन में हलचल हुई कि वो अचानक से कहां चले गए क्या अब सच में उनसे कभी मुलाकात नहीं होगी 

 

वह पूरा दिन बीत गया और फिर दूसरा भी लेकिन उनकी कोई खबर नहीं थी मैं अब खुद से लड़ रही थी कि अगर मुझे उनकी परवाह नहीं थी तो अब मैं हर आहट पर चौंक क्यों रही थी अब हर रात मेरा छत पर जाने का मन क्यों करता था फिर तीसरी रात जब मैं बाथरूम जाने के लिए उठी तो मेरे दरवाजे के बाहर एक चिट्ठी पड़ी हुई थी मैंने कांपते हाथों से उस चिट्ठी को उठाया जिसमें लिखा था

 तुम मुझे जरूर याद करोगी कोमल पर अब शायद हम दोबारा कभी नहीं मिलेंगे तुम अपना ख्याल रखना और मुझे एक बुरा सपना समझ के भूल जाना मैंने मेन गेट खोल कर देखा लेकिन बाहर कोई नहीं था पूरी गली सुनसान थी जैसे किसी ने वहां कदम भी ना रखा हो वो अब हमेशा के लिए जा चुके थे और अब शायद मेरी गलती की वजह से सब खत्म हो चुका था और इसी के साथ हमारी आज की कहानी खत्म होती है 

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