देवी दुर्गा कवच। Devi Durga Kavach PDF Hindi Free Download

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दुर्गा कवच दुर्गा सप्तशती का एक भाग है जिसमे देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों और शक्तियों का वर्णन किया गया है। दुर्गा कवच का सच्चे दिल और मन से पाठ करने वाले भक्त की देवी दुर्गा खुद सुरक्षा करती है। Durga Kavach PDF को हिंदी भाषा में दिया गया है ताकि आपको पढ़ कर समझने में आसानी हो। इस लेख को पूरा पढ़ने के बाद आपको देवी दुर्गा कवच के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त हो जाएगी।

Durga Kavach PDF Overview

PDF NameDurga Kavach PDF ( देवी दुर्गा कवच )
पेजों की संख्या11
PDF Size2.4 MB
PDF भाषाहिंदी
PDF Categoryधार्मिक
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Durga Kavach PDF Hindi Download Link

देवी दुर्गा कवच हिंदी लिरिक्स ( Durga Kavach PDF Hindi )

ऋषि मार्कंड़य ने पूछा जभी !

दया करके ब्रह्माजी बोले तभी !!

के जो गुप्त मंत्र है संसार में !

हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में !!

हर इक का कर सकता जो उपकार है !

जिसे जपने से बेडा ही पार है !!

पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का !

जो हर काम पूरे करे सवाल का !!

सुनो मार्कंड़य मैं समझाता हूँ !

मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ !!

कवच की मैं सुन्दर चोपाई बना !

जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता !!

नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये !

उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये !!

कहो जय जय जय महारानी की !

जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!

पहली शैलपुत्री कहलावे !

दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे !!

तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम !

चौथी कुश्मांड़ा सुखधाम !!

पांचवी देवी अस्कंद माता !

छटी कात्यायनी विख्याता !!

सातवी कालरात्रि महामाया !

आठवी महागौरी जग जाया !!

नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने !

नव दुर्गा के नाम बखाने !!

महासंकट में बन में रण में !

रुप होई उपजे निज तन में !!

महाविपत्ति में व्योवहार में !

मान चाहे जो राज दरबार में !!

शक्ति कवच को सुने सुनाये !

मन कामना सिद्धी नर पाए !!

चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार !

बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार !!

कहो जय जय जय महारानी की !

जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!

हंस सवारी वारही की !

मोर चढी दुर्गा कुमारी !!

लक्ष्मी देवी कमल असीना !

ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा !!

ईश्वरी सदा बैल सवारी !

भक्तन की करती रखवारी !!

शंख चक्र शक्ति त्रिशुला !

हल मूसल कर कमल के फ़ूला !!

दैत्य नाश करने के कारन !

रुप अनेक किन्हें धारण !!

बार बार मैं सीस नवाऊं !

जगदम्बे के गुण को गाऊँ !!

कष्ट निवारण बलशाली माँ !

दुष्ट संहारण महाकाली माँ !!

कोटी कोटी माता प्रणाम !

पूरण की जो मेरे काम !!

दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ !

चमन की रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ !!

कहो जय जय जय महारानी की !

जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!

अग्नि से अग्नि देवता !

पूरब दिशा में येंदरी !!

दक्षिण में वाराही मेरी !

नैविधी में खडग धारिणी !!

वायु से माँ मृग वाहिनी !

पश्चिम में देवी वारुणी !!

उत्तर में माँ कौमारी जी!

ईशान में शूल धारिणी !!

ब्रहामानी माता अर्श पर !

माँ वैष्णवी इस फर्श पर !!

चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो !

संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!

सन्मुख मेरे देवी जया !

पाछे हो माता विजैया !!

अजीता खड़ी बाएं मेरे !

अपराजिता दायें मेरे !!

नवज्योतिनी माँ शिवांगी !

माँ उमा देवी सिर की ही !!

मालाधारी ललाट की, और भ्रुकुटी कि यशर्वथिनी !

भ्रुकुटी के मध्य त्रेनेत्रायम् घंटा दोनो नासिका !!

काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी !

नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो !!

संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!

ऊपर वाणी के होठों की !

माँ चन्द्रकी अमृत करी !!

जीभा की माता सरस्वती !

दांतों की कुमारी सती !!

इस कठ की माँ चंदिका !

और चित्रघंटा घंटी की !!

कामाक्षी माँ ढ़ोढ़ी की !

माँ मंगला इस बनी की !!

ग्रीवा की भद्रकाली माँ !

रक्षा करे बलशाली माँ !!

दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनु धारनी !

दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जग तारनी !!

शुलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशानी !

जंघा स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जग वासिनी !!

हृदय उदार और नाभि की, कटी भाग के सब अंग की !

गुम्हेश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की !!

घुटनों जन्घाओं की करे, रक्षा वो विंध्यवासिनी !

टकखनों व पावों की करे, रक्षा वो शिव की दासनी !!

रक्त मांस और हड्डियों से, जो बना शरीर !

आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर !!

बल बुद्धि अंहकार और, प्राण ओ पाप समान !

सत रज तम के गुणों में, फँसी है यह जान !!

धार अनेकों रुप ही, रक्षा करियो आन !

तेरी कृपा से ही माँ, चमन का है कल्याण !!

आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार !

ब्रह्मणी और लक्ष्मी, पार्वती जग तार !!

विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों की मूल !

दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल !!

भैरवी मेरी भार्या की, रक्षा करो हमेश !

मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश !!

यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये !

कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाए !!

है जग जननी कर दया, इतना दो वरदान !

लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान !!

मन वांछित फल पाए वो, मंगल मोड़ बसाए !

कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर मे आये !!

ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कंड़य !

यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया !!

रहा आज तक था गुप्त भेद सारा !

जगत की भलाई को मैंने बताया !!

सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित !

है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया !!

चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो !

सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया !!

जो संसार में अपने मंगल को चाहे !

तो हरदम कवच यही गाता चला जा !!

बियाबान जंगल दिशाओं दशों में !

तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा !!

तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में !

कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा !!

निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे !

चमन पाव आगे बढ़ता चला जा !!

तेरा मान धन धान्य इससे बढेगा !

तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए !!

यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा !

यही तेरे सिर से हर संकट हटायें !!

यही भूत और प्रेत के भय का नाशक !

यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये !!

इसे निसदिन श्रद्धा से पढ़ कर !

जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए !!

इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पढे !

कृपा से आधी भवानी की, बल और बुद्धि बढे !!

श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम !

सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम !!

कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादाँ !

तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण !!

देवी दुर्गा कवच संस्कृत लिरिक्स (Durga Kavach PDF Lyrics Sanskrit )

ॐ नमश्चण्डिकायै।

॥मार्कण्डेय उवाच॥

ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्य चिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥

॥ब्रह्मोवाच॥

अस्ति गुह्यतमं विप्रा सर्वभूतोपकारकम्।
दिव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्वा महामुने॥2॥ (Durga Kavach)

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥3॥

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥4॥

नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गाः प्रकीर्तिताः।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥5॥

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।

विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥6॥ (Durga Kavach Sanskrit)

न तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसङ्कटे।

नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न ही॥7॥

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।

ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥8॥

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।

ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना॥9॥

माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।

लक्ष्मी: पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥

श्वेतरूपधारा देवी ईश्वरी वृषवाहना।

ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥ 11॥

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।

नानाभरणशोभाढया नानारत्नोपशोभिता:॥ 12॥

दृश्यन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधसमाकुला:। 

शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥13॥

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च। 

कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥ 14॥

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च। 

धारयन्त्यायुद्धानीथं देवानां च हिताय वै॥ 15॥

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।

महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥16॥

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि। 

प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्रि आग्नेय्यामग्निदेवता॥ 17॥ (Devi Kavach)

दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खङ्गधारिणी। 

प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥ 18॥

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।

ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥ 19॥

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहाना।

जाया मे चाग्रतः पातु: विजया पातु पृष्ठतः॥ 20॥ (Shri Durga Kavach)

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।

शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥21॥

मालाधारी ललाटे च भ्रुवो रक्षेद् यशस्विनी।

त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥ 22॥

शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।

कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शङ्करी ॥ 23॥

नासिकायां सुगन्‍धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।

अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥ 24॥

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।

घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥ 25॥

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद्‍ वाचं मे सर्वमङ्गला।

ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धारी॥ 26॥

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।

स्कन्धयोः खङ्गिनी रक्षेद्‍ बाहू मे वज्रधारिणी॥27॥

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चान्गुलीषु च।

नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥28॥

स्तनौ रक्षेन्‍महादेवी मनः शोकविनाशिनी।

हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥ 29॥

नाभौ च कामिनी रक्षेद्‍ गुह्यं गुह्येश्वरी तथा। 

पूतना कामिका मेढ्रं गुडे महिषवाहिनी॥30॥

कट्यां भगवतीं रक्षेज्जानूनी विन्ध्यवासिनी। 

जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥31॥ (Shri Durga Kavach)

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।

पादाङ्गुलीषु श्रीरक्षेत्पादाध:स्तलवासिनी॥32॥

नखान् दंष्ट्रा कराली च केशांशचैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥33॥

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती। 

अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥ 34 ॥

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा। 

ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसन्धिषु॥35 ॥

शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहङ्कारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36॥

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37॥

रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।

सत्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥38॥

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।

यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39 ॥

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके। 

पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥40॥

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥ 41 ॥

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु। 

तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनी॥42 ॥

पदमेकं न गच्छेतु यदिच्छेच्छुभमात्मनः। 

कवचेनावृतो नित्यं यात्र यत्रैव गच्छति॥43 ॥

तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सर्वकामिकः। 

यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ॥44॥

परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्

निर्भयो जायते मर्त्यः सङ्ग्रमेष्वपराजितः।॥45॥

त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्। ॥46॥

य: पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः॥47॥ 

जीवेद् वर्षशतं साग्रामपमृत्युविवर्जितः

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः॥ 48॥ 

स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले॥49॥ 

भूचराः खेचराशचैव जलजाश्चोपदेशिकाः
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा। ॥ 50॥ 

अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबला
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसा:॥ 51॥

ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते। ॥ 52॥

मानोन्नतिर्भावेद्राज्यं तेजोवृद्धिकरं परम्
यशसा वद्धते सोऽपी कीर्तिमण्डितभूतले ॥ 53 ॥

जपेत्सप्तशतीं चणण्डीं कृत्वा तु कवचं पूरा
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्। ॥54॥

तावत्तिष्ठति मेदिनयां सन्ततिः पुत्रपौत्रिकी |
देहान्ते परमं स्थानं यात्सुरैरपि दुर्लभम्। ॥55 ॥

प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः

लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ॥ॐ॥ ॥ 56॥

।। इति देव्या: कवचं सम्पूर्णम् ।

देवी दुर्गा कवच की कहानी

देवी दुर्गा कवच की कहानी माँ देवी दुर्गा और राक्षस महिषासुर पर उनकी विजय के ऊपर है । हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिषासुर नाम का एक बहुत भयंकर और ज़ालिम राक्षस था जिससे पुरे संसार के सभी लोग भयभीत रहते थे,ये राक्षस सभी के ऊपर ज़ुल्म करता था । उस राक्षस को भगवान ब्रह्मा से एक वरदान प्राप्त मिला था, जिस कारण वह राक्षस अविनाशी बन गया था।

महिषासुर ने अपनी अपार शक्ति और अहंकार में आकर सभी देवताओं और मनुष्यों पर समान रूप से जुल्म बरपाना शुरू कर दिया। उसके अति अत्याचार के डर से, देवताओं ने दिव्य त्रिमूर्ति – ब्रह्मा, विष्णु और शिव – मदद मांगी, ताकि उस ज़ुल्मी राक्षस से सभी मानव और देवताओ की रक्षा हो सके । दिव्य त्रिमूर्ति ने ,अपनी दिव्य ऊर्जाओं को मिलाकर, देवी दुर्गा का निर्माण किया, जो बहुत शक्तिशाली , सुन्दर और ज्ञान से युक्त देवी थी।

देवी दुर्गा एक शेर पर सवार होकर और विभिन्न हथियार लेकर, महिषासुर और उसकी राक्षस सेना के खिलाफ भयंकर युद्ध किया। ये युद्ध कई दिनों तक चला, क्युकी महिषासुर राक्षस को भी ब्रह्मा ने कई दिव्या ऊर्जा का वरदान दिया था। हालाँकि, देवी दुर्गा की शक्ति के आगे राक्षस महिषासुर की शक्ति कमज़ोर साबित होने लगी । 

ये युद्ध 10 वें दिन अपने अंत को पंहुचा। देवी दुर्गा ने दसवें दिन महिषासुर पर विनाशकारी हमला किया। उसे अपने त्रिशूल से घायल कर दिया और अपनी तलवार से उसे मार डाला, जिससे उसके आतंक के शासन का अंत हो गया। महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत बुराई पर अच्छाई की, अत्याचार पर धार्मिकता की जीत का प्रतीक माना जाता  है।

देवी दुर्गा कवच की कहानी देवी दुर्गा की शक्ति और कृपा की याद दिलाती है। यह चुनौतियों पर काबू पाने और बुराई पर विजय पाने में विश्वास, भक्ति और साहस के महत्व पर जोर देता है। Durga Kavach PDF का लिंक ऊपर दिया गया है जिसे आप अपने मोबाइल में डाउनलोड कर सकते हैं।

देवी दुर्गा कवच पाठ के लाभ

1- दैवीय सुरक्षा प्रदान करता है: दुर्गा कवच का पाठ करने से ये एक ढाल के रूप में कार्य करता है, तथा भक्त को बुरे प्रभाव और नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है।

2- बाधाओं पर काबू पाता है: दुर्गा कवच का नियमित पाठ भक्तो के जीवन से बाधाओं और चुनौतियों को दूर करने में मदद करता है | 

3 – आंतरिक शक्ति प्रदान करता है: दुर्गा कवच के शक्तिशाली छंद साहस, और आत्मविश्वास पैदा करते हैं, जिससे व्यक्ति को आंतरिक शक्ति का एहसास होता है। 

4 – देवी दुर्गा का आशीर्वाद: दुर्गा कवच देवी दुर्गा के आशीर्वाद का आह्वान करता है, जिसके कारण भक्तों पर देवी दुर्गा की कृपा और दिव्य आशीर्वाद प्रदान करता है।

5 – दुर्गा कवच का नियमित पाठ करने से भक्तो के भय और नकारात्मकता को दूर करता है तथा शांति और शांति की भावना को बढ़ावा देता है।

6 – दुर्गा कवच मंत्रो का एक संग्रह है जो मनुष्यो को नकारात्मक चीज़ो और बुरी शक्तियों से बचाता है 

7 – दुर्गा कवच के नियमित पाठ से आप देवी दुर्गा की सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

दोस्तों इन सभी आशीर्वादों को प्राप्त करने के लिए आप Durga Kavach PDF डाउनलोड करके अपने मोबाइल में ज़रूर सुरक्षित कर ले।

देवी दुर्गा के अलग अलग नाम

देवी दुर्गा को नवरात्र के दिनों में अलग अलग नामों से पूजा जाता है। इनके सभी नाम इस प्रकार से हैं।

1- शैलपुत्री: वह पहाड़ों की बेटी हैं, और शक्ति का प्रतीक हैं।

2- ब्रह्मचारिणी: भक्ति और तपस्या का प्रतिनिधित्व करने वाली देवी दुर्गा का अविवाहित रूप।

3- चंद्रघंटा: देवी के माथे पर आधे चंद्रमा के आकार की घंटी है, जो बहादुरी और सुंदरता का प्रतीक है।

4- कुष्मांडा: ब्रह्मांड के निर्माता, जो सूर्य में निवास करते हैं, 

5- स्कंदमाता: भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की मां, मातृ प्रेम और सुरक्षा का प्रतिनिधित्व करती हैं।

6- कात्यायनी: दुर्गा का उग्र रूप जिसने साहस और वीरता का प्रतीक राक्षस महिषासुर से युद्ध किया।

7- कालरात्रि: दुर्गा का अंधेरा और उग्र रूप, रात से जुड़ा हुआ है और अज्ञानता और अंधेरे का नाश करता है।

8- महागौरी: दुर्गा का शांत और उज्ज्वल रूप, पवित्रता और क्षमा का प्रतीक है।

9- सिद्धिदात्री: सभी सिद्धियों (दिव्य शक्तियों) का अनुदान और आशीर्वाद और समृद्धि प्रदान करने वाली।

10- नवदुर्गा: नवरात्रि के दौरान पूजा की जाने वाली दुर्गा के सभी नौ रूपों का सामूहिक रूप, स्त्री ऊर्जा के विभिन्न पहलुओं का प्रतीक है।

Summary /सारांश

दोस्तों आज के लेख में आपको देवी दुर्गा कवच के बारे में बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई होगी तथा आपको Durga Kavach PDF का लिंक भी ऊपर मिल गया होगा। दोस्तों अगर इस पोस्ट में कुछ गलत है या आपको कुछ भी समझ में नहीं आया हो तो निचे आप कमेंट बॉक्स में कमेंट ज़रूर करें।

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FAQs About Durga Kavach PDF

दुर्गा कवच कब पढ़ना चाहिए?

सामान्यता दुर्गा कवच को कभी भी पढ़ा जा सकता है लेकिन दुर्गा सप्तशती के आरम्भ में इसका पाठ करना शुभ माना जाता है।

दुर्गा कवच पढ़ने के क्या फायदे हैं?

१-इसका पाठ करने से देवी दुर्गा की कृपा भक्तो पर बनी रहती है
२- कई गंभीर रोगो से मुक्ति मिलती है
३- आतंरिक शांति का अनुभव होता है
४- प्रतिदिन पाठ करने से देवी दुर्गा भक्तो के इर्द गिर्द एक कवच बना देती है जोकि आपको विभिन्न कठिनाइयों से सुरक्षा प्रदान करती है।

क्या हम दुर्गा कवच रोज पढ़ सकते हैं?

हाँ दुर्गा कवक को रोज भी पढ़ा जा सकता है। जो किसी असाध्य रोग से ग्रस्त है उनको इसका रोज पाठ करना चाहिए।

Durga Kavach PDF हिंदी में कहाँ से प्राप्त करें ?

Durga Kavach PDF को आप www.pdfsewa.in वेबसाइट से निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं।

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