घर घर की कहानी। Family Hindi Story | Sad & Emotional Hindi Story | Pdfsewa.in

Family Hindi Story : नमस्ते दोस्तों, आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूं जो आपके दिल को छू जाएगी। दोस्तों, मेरा नाम सोनू है और मैं 23 वर्ष का एक साधारण लड़का हूं। मेरी कहानी उन लाखों युवाओं की है जो छोटे गांवों से बड़े सपने लेकर निकलते हैं। हमारा परिवार हमेशा से संघर्ष में रहा। मेरे पिताजी एक छोटी सी दुकान चलाते थे और उसी से हमारा घर चलता था।

मेरे परिवार में मेरी दो छोटी बहनें हैं। प्रीति और नीति। प्रीति मुझसे 2 साल छोटी है और नीति 5 साल छोटी। पिछले साल प्रीति की शादी एक अच्छे परिवार में हुई थी। शादी की सारी तैयारियां और खर्च पिताजी ने उठाया था। उनके हिसाब से बेटी का ब्याह कर देना जिंदगी का सबसे बड़ा काम था। शादी के बस 3 महीने बाद ही पिताजी की छाती में अचानक दर्द हुआ। और डॉक्टर से पहले पहुंचने तक उनका देहांत हो गया। घर पर जैसे बम फूट गया।

मां तो जैसे पत्थर हो गई। कई दिनों तक रोती रही। अब नीति का क्या होगा? इस उम्र में मैं क्या करूंगी? मां की आंखों में यही सवाल दिनरा घूमता रहता। हमारे पास एक कच्चा पक्का मकान था और थोड़ी सी जमीन। मैं आठवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ चुका था। पापा कहते थे पढ़ाई तो बड़े लोगों के लिए है। हमें तो बस दो वक्त की रोटी कमानी है।

मन में था कि और पढूं लेकिन हालात ने इजाजत नहीं दी। पापा के जाने के बाद घर का सारा बोझ मेरे कंधों पर आ गया। गांव में मैं दिहाड़ी मजदूरी करता। कभी खेतों में कभी ईंट के भट्टे पर। लेकिन कमाई इतनी कम थी कि घर मुश्किल से चलता। एक दिन देखा कि मेरी मां पड़ोसी के घर बर्तन मांझने जा रही थी। मैं अपने मां से बोला, नहीं मां, आप ऐसा नहीं करोगी। आपका बेटा जीते जी आपको दूसरों के घर काम करने नहीं भेजेगा। आंखों में आंसू थे।

मेरी मां बोली, बेटा, क्या करें? नीति की शादी के लिए पैसे कहां से आएंगे? तुम्हारी कमाई में तो बमुष्किल खाना चलता है। मां की आवाज में दर्द था। उस रात मैंने फैसला किया शहर जाना होगा। वहां ज्यादा कमाई होगी। अगले दिन मैं पास के गांव में एक निर्माण स्थल पर काम करने गया। वहां मेरा बचपन का दोस्त विनोद मिला। जब काम खत्म हुआ, मैंने उसे अपनी परेशानी बताई। यार, मुझे ज्यादा पैसे कमाने हैं। शहर जाना चाहता हूं पर वहां कोई जानता नहीं।

विनोद ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोले मेरे मामा जी शहर में रहते हैं। उनका बड़ा घर है। उन्हें एक मददगार की जरूरत थी जो घर की देखभाल करे। बाजार से सामान लाए ऐसे काम। वहां खाना रहना फ्री में मिलेगा। तनख्वाह भी अच्छी देंगे। मैं बात करता हूं उनसे। मेरी किस्मत जैसे चमक उठी। विनोद ने तुरंत अपने मामा को फोन लगाया और मेरे बारे में बताया। वह तैयार हो गए। घर आकर मैंने मां को बताया, मां, मुझे शहर जाना होगा। वहां अच्छी नौकरी मिलेगी।

फिर नीति की शादी अच्छे से कर पाएंगे। मां की आंखों में डर था। मगर उन्होंने सिर हिलाकर हां कर दी। उन्होंने चुपचाप मेरे कपड़े एक छोटे से बैग में भर दिए। अगली सुबह मां और नीति ने मुझे बस अड्डे तक छोड़ा। मां ने मेरे माथे पर तिलक लगाया और गले लगाते हुए कहा, अपना ख्याल रखना बेटा। नीति की आंखों में आंसू थे। शहर पहुंचकर मैंने अपने दोस्त विनोद के बताए पते पर जाने के लिए एक ऑटो पकड़ा। मैं अब तक कभी इतने बड़े शहर नहीं गया था।

शादी के बाद पति विदेश चला गया। पारिवारिक कहानी | Best Hindi Story |Meri Kahaniyan

इमारतें इतनी ऊंची थी कि गर्दन ऊपर करने पर भी उनका टॉप नजर नहीं आता था। सड़कें चौड़ी और साफ थी। हर तरफ लोगों की भीड़ और गाड़ियों का शोर। आखिरकार मैं एक बड़े से बंगले के सामने पहुंचा। चारों तरफ लोहे की ऊंची दीवारें और बड़ा सा गेट। मेरे हाथ कांप रहे थे जब मैंने घंटी बजाई। कुछ पल बाद गेट खुला और मैं हक्का बक्का रह गया। मेरे सामने एक सुंदर महिला खड़ी थी। उसकी उम्र तकरीबन 12 से 30 साल होगी। मगर उनका चेहरा कम उम्र का लग रहा था।

गहरी काली आंखें, लंबे काले बाल और रेशमी साड़ी में वह बिल्कुल फिल्मों की हीरोइन जैसी लग रही थी। मैं गांव का सीधा साधा लड़का ऐसी खूबसूरती देखकर पल भर के लिए भूल ही गया कि मुझे क्या कहना है? कौन हो तुम? किससे मिलना है? उनकी मीठी आवाज ने मुझे सपनों की दुनिया से वापस लाया। जी जी मेरा नाम सोनू है। मैं विनोद का दोस्त हूं। उन्होंने अपने मामा जी से मेरे बारे में बात की थी। मैं हकलाते हुए बोला ओह तो तुम विनोद के दोस्त हो।

आओ अंदर आओ। उन्होंने गेट पूरा खोल दिया। मैं अंदर गया तो देखा बंगले के सामने एक बड़ा सा बगीचा था। रंग बिरंगे फूलों से भरा हुआ। पीछे से एक आदमी की आवाज आई। कौन है सीमा? विनोद का दोस्त आया है नौकरी के लिए। महिला ने जवाब दिया। एक साधारण कद काठी के आदमी सामने आए। उम्र लगभग 45 के आसपास होगी। उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा। तो तुम हो विनोद का दोस्त। क्या नाम बताया था उसने? सोनू साहब।

मेरा नाम सोनू है। मैंने सिर झुका कर कहा। हां सोनू। वो गांव वाला लड़का। उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया। मैं राकेश हूं और यह मेरी पत्नी सीमा। मैंने सिर झुकाकर दोनों को नमस्ते किया। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। एक नई जिंदगी की शुरुआत हो चुकी थी। लेकिन मुझे नहीं पता था कि आगे क्या होने वाला है। सीमा ने मुस्कुराते हुए कहा। आओ मैं तुम्हें तुम्हारा कमरा दिखा दूं। तुम थके होगे? आराम कर लो। कल से काम शुरू करना।

मैंने अपना छोटा सा बैग उठाया और उनके पीछे चल दिया। अजनबी शहर, अजनबी लोग और एक नई जिंदगी की शुरुआत। मन में डर था लेकिन साथ ही एक उम्मीद भी थी कि शायद इस बार किस्मत मेरा साथ देगी। अगले दिन से मेरी दिनचर्या शुरू हो गई। हर रोज सुबह जल्दी उठकर काम में लग जाता। सीमा जी जिन्हें अब मैं मालकिन कहता था, बहुत अच्छी थी। वह बातबात पर मुस्कुराती और मेरे काम की तारीफ करती। सोनू तुम कितने अच्छे से काम करते हो।

पिछला लड़का इतना अच्छा नहीं था। वह अक्सर कहती बाजार जाते वक्त मालकिन मुझे एक लिस्ट देती ताजा सब्जियां लेना और हां आज फूल भी ले आना गुलाब। उनकी कोमल आवाज में कुछ ऐसा था जो मेरे दिल को छू जाता। धीरे-धीरे हमारे बीच बातें बढ़ने लगी। कभी वह मुझसे मेरे गांव के बारे में पूछती, कभी मेरे परिवार के बारे में। मैं भी खुलकर बातें करने लगा था। मालकिन पूछती, तुम्हारे परिवार में कौन-कौन रहते हैं?

तो मैं जवाब देता, मालकिन, मेरे परिवार में मेरी बड़ी बहन और मेरी मां वह अकेली है। मेरी कमाई का इंतजार करती है। मालकिन की आंखों में दया दिखी। तुम बहुत अच्छे बेटे हो सोनू। उनकी इस तारीफ से मेरा दिल खुशी से भर उठा। रात में जब मैं अपने कमरे में लेटा होता तो मालकिन का चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमता रहता। मैं खुद को समझाता कि यह गलत है। वह मेरी मालकिन है। मुझसे उम्र में बड़ी है और शादीशुदा है। फिर भी मन नहीं मानता था।

एक सुबह मालकिन बाथरूम से नहा के निकली। उन्होंने नीले रंग का रेशमी गाउन पहना था। बाल गीले थे और उनकी खुशबू पूरे हॉल में फैल गई थी। मैं झाड़ू लगा रहा था और अचानक उनसे आमने-सामने हो गया। सॉरी मालकिन मैंने नजरें झुका ली। कोई बात नहीं सोनू तुम अपना काम करो। उनकी आवाज में एक अजीब सी मिठास थी। 3 महीने बीत चुके थे। अब मैं घर का हर काम जानता था। मालकिन और मेरे बीच एक अजीब सा रिश्ता बन गया था।

नौकर मालकिन से कहीं ज्यादा लेकिन दोस्ती से कम। वह मुझसे हंसकर बातें करती। कभी-कभी मेरे कंधे पर हाथ रख देती और मैं सिहर जाता। लेकिन अचानक सब कुछ बदल गया। मैंने देखा कि मालकिन अब हंसती कम थी। उनकी आंखों में चमक गायब हो गई थी। वह अक्सर अपने कमरे में अकेली बैठी रहती। कभी-कभी रोने की आवाज भी आती। मेरे मालिक जी भी बदल गए थे। वह पहले से ज्यादा गुस्सैल और चिड़चिड़े हो गए थे।

एक दिन मैंने अपने मालिक को फोन पर किसी से बात करते सुना। डॉक्टर क्या कोई और इलाज नहीं है? हम कितना भी पैसा खर्च करने को तैयार हैं? मुझे चिंता होने लगी। आखिर क्या हो रहा था इस घर में? मैं पूछ भी नहीं सकता था। एक नौकर अपने मालिक के निजी मामलों में कैसे दखल दे सकता है? एक शाम मैंने मालकिन को बालकनी में बैठे देखा। वह आसमान की तरफ देख रही थी। आंखों में आंसू थे। मैं कुछ कहने को आगे बढ़ा। फिर रुक गया।

नहीं, यह मेरा काम नहीं है। मैंने सोचा और वापस अपने कमरे में चला गया। धीरे-धीरे मालिक जी घर पर कम और बाहर ज्यादा रहने लगे। अक्सर देर रात तक लौटते। कभी-कभी दो-तीन दिन के लिए बाहर चले जाते। मालकिन अकेली रह जाती और मेरे साथ थोड़ा ज्यादा बात करने लगी। सोनू क्या तुम कभी सोचते हो कि जिंदगी कितनी अजीब है? कुछ लोगों के पास सब कुछ होता है। फिर भी वे अधूरे होते हैं। मैं उनकी बात का मतलब नहीं समझता।

बस सिर हिला देता। आज का दिन भी ऐसा ही था। मालिक जी सुबह से बाहर गए थे। शाम को उन्होंने फोन किया कि वे कल सुबह तक लौटेंगे। मालकिन ने दिन भर कुछ नहीं खाया। मैंने कई बार पूछा पर उन्होंने मना कर दिया। रात को करीब 11:00 बजे मैं अपने कमरे में लेटा था। बाहर बारिश हो रही थी और बिजली कड़क रही थी। अचानक मेरे कमरे का दरवाजा धीरे से खुला। कौन है? मैंने डर कर पूछा। मालकिन थी। उन्होंने सफेद रंग की साड़ी पहनी थी।

बाल खुले थे और आंखें लाल थी। जैसे बहुत रोई हो। मालकिन आप सब ठीक तो है? मैं बिस्तर से उठ बैठा। वो मेरे पास आकर बैठ गई। सोनू मुझे तुमसे कुछ मांगना है। उनकी आवाज कांप रही थी। जी मालकिन आप कहें तो मैं अभी बाजार से कुछ नहीं सोनू यह ऐसी चीज नहीं जो बाजार से लाई जा सके। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे करीब आ गए। फिर मालकिन बोली सोनू मुझे तुमसे एक बच्चा चाहिए। यह सुनकर मेरे पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई।

मैंने फिर से बोला, क्या मैंने ठीक सुना? मालकिन, आप क्या कह रही हैं? मैंने हकलाते हुए कहा, “मैं तो बस एक नौकर हूं। अगर आपके पति को पता चला तो? फिर मालकिन बोली, राकेश, मेरा पति कभी पिता नहीं बन सकते।” सोनू, मालकिन की आंखों से आंसू बहने लगे। डॉक्टर ने कहा है कि वे वे बांझ हैं। मैं समझ गया कि आखिर घर में चल क्या रहा था। मालिक जी का गुस्सा, मालकिन का रोना, व फोन पर डॉक्टर से बातचीत, सब कुछ साफ हो गया। पर मालकिन, यह गलत है।

मैं आपके साथ ऐसा नहीं कर सकता। क्यों नहीं कर सकते सोनू? क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं? उन्होंने अपना चेहरा मेरे करीब लाया। मैं जानती हूं तुम मुझे देखते हो। मैं तुम्हारी नजरों में वह चमक देखती हूं। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। यह सच था। मैं उन्हें चाहता था। लेकिन मालकिन की बात सुनकर मेरा दिल धड़कने लगा।

मैंने धीरे से पूछा। आखिर ऐसा क्या हुआ है जो आपके पति आपको बच्चा नहीं दे सकते? इस सवाल पर मालकिन की आंखें भर आई। क्या तुम्हें कुछ भी अंदाजा नहीं है सोनू? तुम इतने दिनों से यहां रहते हो फिर भी मेरी तकलीफ नहीं समझे। मैंने शर्मिंदगीगी से सिर झुका लिया। मैं देख तो रहा था कि आप परेशान हैं। पर मैं आपके निजी मामलों में दखल देना नहीं चाहता था। मुझे डर था कि आप बुरा मान जाएंगी। अच्छा तो अब सुनो मेरी कहानी। वह फर्श पर बैठ गई और बताने लगी।

राकेश से मेरी मुलाकात कॉलेज में हुई थी। मैं पहले साल की छात्रा थी और वह तीसरे साल में थे। उनका सीधा साधा स्वभाव मुझे छू गया। हम दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा। लेकिन हमारे परिवारों ने इस रिश्ते को स्वीकार नहीं किया। मेरे पिताजी ने कहा कि या तो इस लड़के को भूल जाओ या फिर इस घर को। मैंने राकेश को चुना। हम दोनों ने मंदिर में जाकर शादी कर ली। शुरू के दिन बहुत कठिन थे। एक छोटे से किराए के कमरे में रहते थे।

राकेश एक कंपनी में काम करते थे। तभी उन्हें दुबई में नौकरी का ऑफर मिला। मैंने मना किया पर उन्होंने समझाया सीमा हम अपना घर बसाएंगे। अच्छी जिंदगी जिएंगे। बस कुछ साल की बात है। मैं मान गई। राकेश चले गए और वहां अच्छे पैसे कमाने लगे। धीरे-धीरे हम इस घर को बना पाए। मैं खुश थी कि हमारा संघर्ष रंग ला रहा था। मालकिन की आवाज भारी हो गई। पर फिर सब बदल गया। राकेश की तबीयत बिगड़ने लगी।

जब मैंने जोर देकर पूछा तब उन्होंने बताया कि उन्हें कैंसर है। कैंसर मेरी आवाज कांप गई। हां सोनू। वहां दुबई में उनकी गलत संगत हो गई थी। शराब, सिगरेट और ना जाने क्या-क्या। धीरे-धीरे यह लत बन गई। डॉक्टरों ने कहा कि अब वह कभी पिता नहीं बन सकते और अब उनका कैंसर आखिरी चरण में है। मालकिन बिलख पड़ी। मैंने कितनी बार कहा था बच्चा चाहिए पर राकेश हमेशा टालते रहे। अभी नहीं पहले घर बना लें। पहले पैसे जमा कर लें।

और अब देखो आज मुझे तुम्हारे सामने हाथ फैलाने पड़ रहे हैं एक बच्चे के लिए। उनकी कहानी सुनकर मेरी आंखें नम हो गई। एक 32 साल की औरत जिसकी अपनी कोई संतान नहीं और जिसका पति मरने वाला है। क्या होगा इनका? इस दुनिया में अकेली औरत के साथ कितने लोग बुरी नजर से देखते हैं और सीमा जैसी खूबसूरत औरत के साथ तो और भी मैं मरने के बाद क्या करूंगी सोनू? अकेली बेसहारा कोई अपना भी नहीं।

अगर एक बच्चा होगा तो उसके सहारे जिंदगी कट जाएगी। वह मेरे पैरों में गिर गई। मेरी खाली गोद को तुम ही भर सकते हो। मैं भी तो एक जवान आदमी था जिसके दिल में इस खूबसूरत औरत के लिए एक खास जगह बन चुकी थी। जज्बात पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था। मैंने उनके आंसू पोंछे और हामी भर दी। उस रात हमारे बीच जो हुआ वह मेरे लिए भी नया अनुभव था। वह मेरी बाहों में एक छोटे बच्चे की तरह सिमट गई थी। सुरक्षित और आश्वस्त।

मुझे भी एक अजीब सा सुकून मिल रहा था। फिर यह सिलसिला जारी रहा। रात को जब मालिक सो जाते, वह मेरे कमरे में आ जाती और सुबह उनके उठने से पहले लौट जाती। एक महीने बाद अचानक मेरे मालिक की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई। हम उन्हें हॉस्पिटल ले गए। लेकिन रास्ते में ही उन्होंने आखिरी सांस ली। मालकिन फूट-फूट कर रोने लगी।

उनका दुख देखकर मेरी आंखें भी नम हो गई। अंतिम संस्कार के बाद मालकिन का दुख कम होने का नाम नहीं ले रहा था। एक महीना बीत गया पर वह उसी सदमे में थी। रोज रात को मेरे कंधे पर सिर रखकर रोती। मैं इतनी कम उम्र में विधवा हो गई सोनू। मैं कैसे जिऊंगी? उनका दर्द देखकर मेरा दिल पिघल जाता। एक दिन मैंने हिम्मत जुटाई और कहा। मालकिन अगर आप बुरा ना माने तो मैं आपको अपना बनाना चाहता हूं। हमारे बीच तो पहले से ही एक रिश्ता है।

मैं आपको इस तरह रोते नहीं देख सकता। मैं आपको एक नई जिंदगी देना चाहता हूं। मेरी बात सुनकर वह मेरे गले लग गई। तुम सच में बहुत अच्छे इंसान हो। सोनू। तुम्हें जैसा ठीक लगे। अगले ही दिन हमने मंदिर में जाकर शादी कर ली। मैंने उन्हें विधवा के दर्द से आजादी दिला दी। कुछ दिन बाद मैं गांव गया और अपनी मां को सारी सच्चाई बताई। मुझे डर था कि मां नाराज होंगी। पर उन्होंने मुझे गले लगा लिया। तूने बहुत अच्छा किया बेटा। मैं भी तो एक विधवा हूं।

इसीलिए मैं उसका दर्द समझती हूं। मेरी उम्र हो चुकी थी। पर वह अभी जवान है। उसका भी जीने का हक है। मां ने सीमा को अपनी बहू के रूप में खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। मैं मां को लेकर शहर लौट आया। मां और सीमा दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगी। फिर मैंने अपनी छोटी बहन नीति की भी शादी एक अच्छे परिवार में करवा दी। मैंने शहर में ही एक छोटी सी नौकरी ढूंढ ली। धीरे-धीरे सीमा भी अपने दुखद अतीत को भूलकर नई जिंदगी में रंग भरने लगी।

आज हम सब एक साथ खुश हैं। सीमा के पेट में हमारा बच्चा पल रहा है और मां उसकी देखभाल में लगी रहती है। लेकिन दोस्तों कभी-कभी मैं सोचता हूं क्या एक विधवा को नई जिंदगी देना गलत है? क्या उसे भी जीने का हक नहीं है? क्या मैंने सीमा से शादी करके कोई गुनाह किया है? आप क्या सोचते हैं? क्या समाज कभी मुझे माफ करेगा?

या फिर लोग हमेशा हमारे रिश्ते को गलत नजरों से ही देखेंगे। जिंदगी कितनी अजीब है। कभी-कभी हमें वह मिल जाता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती और कभी-कभी हम वह खो देते हैं जिसे हम अपना समझते हैं। तो दोस्तों, आपको यह कहानी कैसी लगी? कृपया अपने विचार सांझा करें। अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो इसे लाइक और शेयर करें

Family Hindi Story

Sharing Is Caring:

Leave a Comment